________________ सातद्वीपका मंतव्य और उसका निरसन ] गाथा 76-77 [157 छूटनेका अनमोल कारण है / यदि कलिकालके जीव इस तीर्थके दर्शन नहीं कर पाएँगे तो उन्हें मोक्ष पानेका दूसरा प्रबल साधन क्या? यह शत्रुजय पर्वत तो अनंता सिद्धजीवोंका स्थान होनेसे इसकी रजे रज भी पवित्र है / हम भी बोलते हैं कि 'कंकड कंकड अनंता सिद्धया।' इस पर्वतको स्पर्श करनेवाले किसी भी जीवमात्रको अवश्य 'भव्य 'कहा है / (मोक्ष प्राप्त करनेकी योग्यता वाले) सर्व पर्वतों में यह पहाड पवित्र है। इसके विमलाचल, शत्रुजय, सिद्धक्षेत्र इत्यादि अनेक नाम हैं, इसलिए यदि इस तीर्थकी चारों ओर समुद्र रक्खा जाएगा तो ऐसे प्रबल आलंबनके बिना कलिकालके भव्यात्माओंकी क्या दशा होगी? ___ इस तरह उनके समक्ष सर्व माहात्म्यका वर्णन करते ही तुरंत उस समुद्रको शत्रुजयकी चारों ओर रखनेसे रुक जाते हैं, और अतः अब भी देख सकते हैं कि वह समुद्र तलाजा तक आया है और मानो वहाँसे लौट गया हो ऐसा लगता है / वहाँ सामने किनारा भी दीखता है। [विशेष जानकारीके लिए देखिए : शत्रुजयमाहात्म्य-सर्ग 8 ] यह आया हुआ समुद्र जिसे हम देखते हैं उसके विभागोंका परिचय हो सके इसलिए उन उन स्थानोंकी अपेक्षासे जनताने अनेक नाम भी रक्खे हैं / इस तरह इस दृश्यमान समुद्रका संबंध लवणसमुद्रके साथ होनेसे ऐसी महान जलवृद्धिका जल सर्वत्र असर करता हो उसमें सोचने जैसा रहता नहीं है / ये पातालकलश अन्य किसी समुद्रमें नहीं हैं / जिससे लवणसमुद्रके सिवा अन्य समुद्रोंमें ज्वार-भाटा भी नहीं है / ___ति लोकवी असंख्यात द्वीप-समुद्र आए हैं / अन्य दर्शनकार सात द्वीप (और सात) समुद्र मानते हैं, ऐसा माननेका क्या कारण हुआ यह आगे बताया है, परंतु यहाँ इतना बताना जरूरी है कि-सर्वज्ञ भगवंत कदापि अन्यथा बोलते ही नहीं हैं / जिन्होंने रागद्वेषका निर्मूल क्षय करनेके बाद ही, जो वचनोच्चार किया हो वह सर्वथा सत्य ही होता है, क्योंकि असत्य बोलनेके कारणों का उन्होंने सर्वथा क्षय किया है, उन सर्वज्ञ प्रभुके वचनमें संशयको तो स्थान ही नहीं होता / जिन्होंने अल्पबुद्धि या अल्पज्ञानसे जिस जिस वस्तुको जितने रूपमें देखी उतनी कही, अतः वह वस्तु उतनी ही है ऐसा कैसे कहा जाए ? सात द्वीपका मन्तव्य ___ इन सात द्वीप-समुद्रोंकी प्ररूपणा भगवान महावीर महाराजके समकालीन शिवनामा राजर्षिसे चली आती दीखती है / उस राजर्षिको उग्र तपस्या तपते तपते अल्पप्रमाणका विभंगज्ञान हुआ / उस ज्ञानसे यावत् सात द्वीप-समुद्र तो वे देख सके / परंतु आगे देखनेकी शक्ति जितना ज्ञान नहीं होनेसे न देख सके, अतः उस राजर्षि ने 'सात द्वीपसमुद्र ही मात्र लोकमें हैं,' ऐसी प्ररूपणा सर्वत्र फैलाई / लोग तो भेड़ियाधसान जैसे हैं