________________ भरती-ओटका कारण क्या है ? ] गाथा 76-77 [ 155 मध्यभागमें चौडाईमें एक लाख योजन भूमिमें गए हुए हैं, जिससे समभूमिकी समसतहसे एक लाख योजन उपरांत एक हजार योजन प्रमाण पूर्ण होने पर नीचेके कलशका तलवा आता है / और ऊपरसे चारों कलश समसतहमें रहते हैं। __पूर्व दिशाके कलशका नाम 'वडवामुख' दक्षिण दिशाका ‘केयूप' पश्चिम दिशाका 'यूप' और उत्तर दिशाका 'ईश्वर' इस तरह महाकलश आए हैं / एक कलशसे दूसरे कलशका अंतर 219265 योजन है / और उस हरएक अंतरकी चौड़ाई दस हजार योजन विस्तारवाली है / इस विस्तारमें लघुपातालकलशोंकी नौ पंक्तियाँ समा जाती है। (चित्र देखनेसे विशेष खयाल आएगा) इन नवों पंक्तियों के मिलकर एक कलशके आंतरेके 1971 लघुपातालकलश हैं, इस तरह चारों कलशके आंतरेकी नवों पंक्तियोंके कुल 7884 लघुपातालकलश आए हैं / प्रत्येक कलश पर आधे पल्योपमके आयुष्यवाले अधिपति देव होते हैं / ये लघुपातालकलश बडे चार कलशोंकी अपेक्षासे प्रमाणमें उनसे सौवें भागके जानें / ये कलश सचित्त पृथ्वीके वनरत्नमय हैं। इन चारों महापातालकलशों पर अनुक्रमसे एक पल्योपमके आयुष्यवाले काल-महाकालवेलंब-प्रभंजन-ये चारों देव अधिपतिके रूपमें हैं। इन चारों महाकलशोंकी एक लाख योजनकी गहराईको तीन भागों में बाँटनेसे 333333 योजन प्रत्येक भागमें प्राप्त होता है। उनमें प्रथम भागके 333333 भागमें केवल वायु भरा है, मध्यके 333333 भागमें वायु और जल दोनों होते हैं; और ऊपरके 333333 भागमें केवल जल होता है / (लघु कलशोंमें भी यही क्रम समझे, परन्तु प्रमाण कम समझें / ) _ अब नीचेके दोनों भागमें वायु होनेके कारण वायुके स्वभावके अनुसार-कुदरती तौर पर ही उनमें तेज हवा चलती है और वह वायु अत्यन्त क्षुब्ध होता है / क्षुब्ध होनेके कारण अगल-बगल निकलनेका मार्ग भी चाहिए और मार्ग तो है नहीं, अतः वायु ऊँचा उछलता है / (जैसे मनुष्योंके उदर में रहा श्वासोच्छ्वास-प्राणवायु स्वाभाविक ऊर्ध्व होकर उच्छ्वासरूपमें बाहर निकलता है वैसे।) बाहर निकलने चाहता ऐसा वायु नीचेसे उछलता हुआ तीसरे भागमें रहे जलको और परंपरासे कलशके ऊपरके जलको उछालता है, जिससे समुद्रगत 16000 योजनकी शिखारूपमें रहा ऊँचा जल वह भी शिखाके अंतसे ऊपर दो कोस तक वृद्धि पाता है / यह जलवृद्धि कुदरती तौर पर और वेलंधरनागकुमार देवोंके 174 तीनों दिशावर्ती प्रयत्नसे तीनों बाजू पर और समुद्र के बाहरकी प्रचंड हवासे आगे बढ़नेसे रुक जाती है क्योंकि वे देव बडे कलछे ( करछुल )से आगे बढ़ते जलको रोकते जाते हैं / ऐसा नहीं होता तो उस समुद्रवेलकी वृद्धि अनेक नगरोंको एक ही थपेडे में 174. इस जल्वृद्धिको रोकनेवाले नागकुमार निकायके 174000 देव होते हैं / श्री संघके प्रबल पुन्योदयसे ही और तथाविध जगत् स्वभावसे ही जलवृद्धि वृद्धि पानेसे रुक जाती है।