________________ द्वीप-समुद्रोंकी व्यवस्थामें विशेषता ] गाथा 72-75 [149 त्रिप्रत्यवतार द्वीप-समुद्र दसवें अरुण-द्वीपसे लेकर अन्तिम देवादि पांच द्वीपोंसे अर्वाक् आए सुरवरावभासद्वीप तक जानें / ____ तात्पर्य यह है कि-ऊपरकी 72-73 गाथाओं में कहे गए मतानुसार प्रशस्त सर्व वस्तुओंके नामवाले सर्वद्वीप ऊपर बताए पदानुसार त्रिप्रत्यवतार जानें, परन्तु यह नियम दसवें अरुण-द्वीपसे शुरू करके सुरवरावभास समुद्र तक समझें। जैसे जम्बूद्वीप तथा लवणसमुद्र, ये असंख्यात हैं अर्थात् जो पहला जम्बूद्वीप है उसी नामवाला त्रिप्रत्यवतार युक्त जम्बूद्वीप असंख्यात द्वीप-समुद्र व्यतीत होनेके बाद ही आता है, इस तरह दूसरा तीसरा आदि असंख्यात जम्बू , असंख्यात धातकी, असंख्यात पुष्करवर, असंख्यात घृतवर आदि सर्व द्वीपोंके लिए जाने / परन्तु इतना विशेष समझे कि असंख्यात अन्य नामवाले असंख्य द्वीप-समुद्र जब व्यतीत हों तब दूसरा जम्बू, दूसरा धातकी और दूसरा लवण आता है अर्थात् ये समान नामवाले द्वीप अथवा समुद्र साथ-साथ ही होते नहीं हैं, परन्तु असंख्यात असंख्यात द्वीप-समुद्रोंके अन्तर पर होते हैं। इस तरह सर्व १६"द्वीपादि के लिये सोचें / द्वीपसमुद्रोंकी व्यवस्थामें विशेषताश्री ‘जीवसमास' वृत्तिमें तो ऐसा बताया है कि-रुचकद्वीप तकके द्वीप-समुद्र तो ऊपर जो क्रम कहा उसी क्रमके अनुसार ही है। परन्तु तत्पश्चात् असंख्य द्वीप-समुद्र व्यतीत होने पर भुजगद्वीप आता है, उसके बाद असंख्य द्वीप-समुद्र व्यतीत होनेके बाद कुशद्वीप आता है, तत्पश्चात् असंख्यात द्वीप-समुद्रोंका उल्लंघन करने पर क्रौंचद्वीप आता है, उसके बाद असंख्य द्वीपोंका उल्लंघन करने पर अनेक प्रकारके जो आभरण-आभूषण हैं उनमेंसे किसी भी एक आभूषणके नामवाला द्वीप आता है, तत्पश्चात् असंख्य द्वीप-समुद्रोंका उल्लंघन होनेपर अनेक प्रकारके वस्त्रों से किसी एक वस्त्रके नामवाला द्वीप आता है। इस तरह असंख्य-असंख्य द्वीप-समुद्रोंका उल्लंघन होनेपर 'आभरणवस्थगन्धे' इस गाथामें जो जो नाम दिये हैं, उन उन नामोंवाले अनेक प्रकारोमेंसे अनुक्रमसे कोई भी एक द्वीप आता है। यहाँ यह शंका होगी कि-जब असंख्य-असंख्य द्वीप-समुद्रोंके अन्तर पर आभरण-वस्त्रगन्ध आदि नामवाले द्वीप-समुद्र हैं तो बिचमें जो असंख्य असंख्य द्वीप-समुद्र हैं वे किस नामके हैं ? उस शंकाके समाधानमें समझना चाहिए कि-बिचमें वर्तित वे असंख्य द्वीपसमुद्र शंख-ध्वज-स्वस्तिक इत्यादि शुभ नामवाले ही हैं। यहाँ तात्पर्य इतना ही है कि बिचमें असंख्य द्वीप-समुद्र चाहे किसी भी नामका हो ( उसका यहाँ प्रयोजन नहीं है) परन्तु असंख्य असंख्य द्वीप-समुद्रोंके अन्तर पर 'आभरण-वत्थ-गन्ध' इत्यादि गाथामें कथित नामवाले द्वीप अनुक्रमसे आने चाहिए / साथ ही प्रस्तुत ग्रन्थके हिसाबसे 'रुचकद्वीप' तेरहवाँ आता है। जब कि श्री अनुयोगद्वार सूत्रके हिसाबसे 'रुचकद्वीप' ग्यारहवाँ है / .. 167. जम्बूद्वीपलवगादयः शुभनामानो द्वीपसमुद्राः [ तत्त्वार्थ-अः 3]