________________ द्वीप-समुद्रोंका प्रमाण-आकार ] गाथा 68-69 [141 गाथार्थ-अढ़ाई उद्धारसागरोपमके समयोंकी जितनी संख्या हो उतनी संख्यावाले द्वीप-समुद्र- हैं और पूर्व-पूर्वसे पीछे-पीछेके द्वीप-समुद्र दुगुने-दुगुने विस्तारवाले हैं तथा प्रथम द्वीपको छोड़कर शेष समग्र द्वीप-समुद्र वलयाकारवाले हैं / प्रथम ( जम्बूद्वीप) लाख योजन प्रमाणवाला. है, तथा वह वृत्त-गोलाकारमें है और दूसरे सब द्वीप-समुद्र उसे घेरकर वलयाकारमें स्थित हैं। उनमें पहला जम्बूद्वीप और अन्तिम स्वयंभूरमण समुद्र है। / / 68-69 / / विशेषार्थ—पहले सूक्ष्म-बादर भेदोंसे छः प्रकारके पल्योपम और छः प्रकारके सागरोपमका सविस्तर स्वरूप दिखाया गया है / वैसे अढाई उद्धारसागरोपम जितने कालमें जितने समय हों उतने द्वीप समुद्रोंकी संख्या जिनेश्वरोंने कही है। ___ अथवा एक सूक्ष्मउद्धार १६°सागरोपमके 10 कोडाकोडी सूक्ष्मोद्धार पल्योपम होते हैं, अतः अढाई सूक्ष्म उद्धारसागरोपमके 25 कोडाकोडी सूक्ष्म उद्धारपल्योपम होते हैं। इन 25 कोडाकोडी पल्योपमोंमें पूर्व कथित कथनानुसार जितने वालाग्र समाएँ उतने द्वीपसमुद्र (दोनों मिलकर) हैं। द्वीप-समुद्रोंका प्रमाण-- - तेलपुल (मालपुआ )के आकारमें अथवा पूर्णिमाके चन्द्राकारमें सर्वद्वीप-समुद्राभ्यन्तरवर्ती स्थित पहले जम्बूद्वीपको वर्जित करके वलयाकारमें रहे शेष (सर्व) द्वीप-समुद्र पूर्व पूर्वसे द्विगुण विस्तारवाले हैं। जैसे कि-जम्बूद्वीप एक लाख योजनका, तदनन्तर आया हुआ लवणसमुद्र उससे द्विगुण दो लाख योजनका, उससे द्विगुण धातकीखण्ड 4 लाख योजनका ऐसे उत्तरोत्तर द्विगुण द्विगुण (दुगुने) विस्तारवाले सर्व द्वीप-समुद्र जानें / सकल द्वीप-समुद्र का आकार उत्सेधांगुल (अपना जो चालू अंगुलप्रमाण वह )से प्रमाणांगुल चारसौ गुना अथवा हजार गुना बड़ा है अर्थात् चारसौ उत्सेधांगुलका एक प्रमाणांगुल हो उस प्रमाणांगुलसे निष्पन्न एक लाख योजन प्रमाणवाला पहला जम्बूद्वीप आया है। यह जम्बूद्वीप जैनशास्त्रके मतानुसार वृत्त विष्कम्भवाला है अर्थात् थाली अथवा मालपुएके समान गोलाकार है, परन्तु 160. पल्योपम-सागरोपमका वर्णन पृष्ठ 22 से 38 तकमें कथित है। 161: द्वीप अर्थात् क्या ? जिसके चारों ओर पानी हो और बीचमें बसने योग्य भूमि हो उसे द्वीप कहते हैं।