________________ नित्यराहु और पर्वराहु, चन्द्रकी हानिवृद्धि। ] गाथा-६१ [131 घटनाएँ उपस्थित होती है आदि प्रसंग पाकर ग्रन्थान्तरसे किंचित् उपलब्ध होता है / चन्द्रके बिंबकी शुक्लपक्षमें क्रमशः वृद्धि होना और कृष्णपक्षमें क्रमशः हानि होना उसका कारण राहुके विमानका आवरण और अनावरण मात्र ही है / ये राहु दो प्रकारके हैं-१. नित्यराहु और 2. पर्वराहु / / पर्वराहु-यह राहु किसी-किसी समय पर सहसा अपने विमानसे चन्द्र या सूर्यके विमानको ढंक देता है, अतः उस समय ‘ग्रहण हुआ' ऐसा लोग कहते हैं। यह पर्वराहु जघन्यसे छ मास पर चन्द्रको तथा सूर्यको ग्रहण करता है। अर्थात् स्वविमानकी छायासे चन्द्र-सूर्यके विमानोंको आच्छादित कर देता है, और उत्कृष्टसे वही पर्वराहु चन्द्रको १५०बयालीस मास पर और सूर्यको अडतालीस वर्ष पर आच्छादित करता है। नित्यराहु-इस राहुका विमान कृष्णवर्णका है। वह विमान तथाप्रकारसे स्वाभाविकरूपमें ही चन्द्रमाके साथ ही अविरहित होता है। चन्द्रके विमानके नीचे निरन्तर चार अंगुल दूर रहकर चलते चन्द्रमाके बिंब (विमान )को अमुक अमुक प्रमाणमें धीरे धीरे क्रमशः प्रतिदिन ढंक देता है इससे कृष्णपक्षकी उत्पत्ति होती है और पुनः पहले जिस तरह चन्द्रमाके बिंबको प्रतिदिन जितने जितने प्रमाणमें ढंका उसी तरह उतने उतने ही भाग प्रमाण बिंबके आवरणवाले भागको क्रमशः छोड़ता जाता है, जिससे १५'शुक्लपक्षकी उत्पत्ति मानी जाती है। उक्त गतिसे सदाकाल चन्द्रविमानका और राहुविमानका परिभ्रमण इन अढाईद्वीपवर्ती क्षेत्रों में हुआ करता है, और इसी कारणसे चन्द्रमाके विमान सम्बन्धित तेज द्वारा हानि-वृद्धित्वका वास्तविक आभास होता है। चान्द्रमास आदिका प्रभव भी इसीसे हुआ है / हानिवृद्धिकारण-चन्द्रमाके विमानके बासठ भागकी कल्पना करें और उन बासठ भागोंको पन्द्रह तिथियों के साथ विभाजित करनेसे प्रत्येक तिथिको चार चार भाग मिलेंगे ( वाकी जो दो भाग बचे, वे राहुसे आच्छादित होते ही नहीं है, जिससे उन्हें पन्द्रह तिथियोंके भागोंकी गिनतीसे बाहर ही समझें) ये चार चार भागप्रमाण चन्द्रमाका विमान हमेशा नित्यराहुके विमानसे आच्छादित होता जाता है अतः 15 दिन पर (154 4 = 60) 150. ससिसूराणं गहणं सड्ढतिवरिसाडयालवरिसेहिं / ___ उक्कोसओ कमेणं, जहन्नओ मासछक्केणं // 9 // [ मंडल प्रकरण ] 151. उक्तं च-राहुविअ पइदिअहं, ससिणो इक्विक भाग मुज्झई / आइअ चन्दो बीआइ, दिणेसु पयडो हवइ तम्हा // 1 // बावटि बावट्ठि, दिवसे उ सुक्वपक्खस्स / जं परिड्ढइ चन्दो खवेइ तं चेव कालेण // 2 // '