________________ 130 ] बृहत्संग्रहणीरत्न हिन्दी [ गाथा 60-61 2. साथ ही अन्य एक आचार्य ऐसा बताते हैं कि-कोडाकोडीकी प्रसिद्धि 14 शून्य(Zero ) वाली जो संख्या है वही लेना और ताराओंके विमानोंका प्रमाण ‘नगपुढवीविमाणाइमिणसु पमाणंगुलेणं तु' इत्यादि पाठके अनुसार प्रमाणांगुलसे जो लिया जाता है, उस (प्रमाणांगुल )से न लेते हुए उत्सेधांगुलसे ग्रहण करें, जिससे जम्बूद्वीपका 7905694150 योजन क्षेत्रफल है वह प्रमाणांगुलके हिसाबसे है और उत्सेधांगुलसे प्रमाणांगुल १४४चारसौ गुना ( अथवा हजार गुना ) होनेसे जम्बूद्वीपका उपर्युक्त क्षेत्रफल (ताराओंके उत्सेधांगुल विमानोंसे) 400 गुना अथवा हजारगुना करें तो उतने बड़े आकाशक्षेत्रमें प्रसिद्ध ऐसी कोडाकोडीकी संख्यावाले (66975 कोडाकोडी) ताराओंके विमान सुखसे समा जाएँ, उसमें कोई कठिनाई नहीं प्रतीत होती / [60]. ___अवतरण-चन्द्रके परिवारके वक्तव्यप्रसंग पर परिवारमें विद्यमान राहुग्रहके सम्बन्धमें . अब वर्णन करते हैं किण्हं राहुविमाणं, निच्चं चंदेण होइ अविरहियं / . चउरंगुलमप्पत्तं, हिट्ठा चंदस्स तं चरइ // 61 / / गाथार्थ-कृष्णवर्णके राहुका विमान निरंतर चन्द्र के साथ ही होता है इसलिए उससे दूर नहीं होता अर्थात् चार अंगुल अलग रहकर हमेशा चन्द्र के नीचे चलता है // 61 // विशेषार्थ-गाथार्थवत् सुगम है, फिर भी प्रासंगिक कुछ कहा जाता है। चन्द्रमाके साथ राहुका संयोग होनेसे कैसी कैसी स्थितियाँ उत्पन्न होती हैं यह बताया जाता है / समग्र जम्बूद्वीपमें, दिवस और रात्रि ऐसा विभाग उत्पन्न करनेवाला, दो सूर्योका प्रकाश है। और तिथियोंकी व्यवस्थाको उत्पन्न करनेवाला दो चन्द्रोंका प्रकाश है। उसमें सूर्यके बिंबकी हानि-वृद्धि हमेशा नहीं होती है, जिसका हम प्रत्यक्ष अनुभव करते हैं, क्योंकि उसे राहु जैसी सदा होनेवाली कोई बाधा नहीं है। यद्यपि लम्बे समयके बाद वह आयें यह अलग बात है, परन्तु चन्द्र के बिबकी होती हुई हानि-वृद्धि तो हम प्रत्यक्ष देख सकते हैं, जैसे कि (बीज) दूजके दिन सिर्फ धनुषकी डोरीके आकारवाला चन्द्रका बिंब होता है और उसके बाद क्रमसे बढ़ता हुआ सुदि पूर्णिमाको संपूर्ण चन्द्रबिंब दृष्टिगोचर होता देखते हैं। यद्यपि मूलस्वरूपमें तो चन्द्रमा हमेशा अवस्थित स्वभाववाला ही है, उसमें कुछ भी घट-बढ़ होती ही नहीं, परन्तु अमुक आवरणके संयोगोंको पाकर ही उसमें हमेशा वास्तविक हानि-वृद्धि उत्पन्न होती ही रहती है। यह हानि-वृद्धि किस तरह और किससे होती है ? तथा कौन करता है ? और उससे किस तरहकी दिनमानादिकी 149. उत्सेधांगुलसे प्रमाणांगुल 2 // गुना, 400 गुना और 1000 गुना बड़ा है / इसलिए खास ध्यान रखना चाहिये कि- जिस ठिकाने पर जैसे प्रमाणके लिए जितना योग्य हो उतने गुना वहाँ वहाँ घटाना चाहिए /