________________ सैन्य संबंधी सात प्रकारके देवोंका नाम ] गाथा 46-47 [109 अवतरण-सैन्यसम्बन्धी सात प्रकारके देवोंके नाम कहते हैं / गन्धव-नट्ट-हय-गय, रह-भड-अणियाणि सव्वइंदाणं / वेमाणियाण वसहा, महिसा य अहोनिवासीणं // 46 // (प्र. गा० सं० 9) गाथार्थ-विशेषार्थके अनुसार // 46 // विशेषार्थ-देवलोकके चारों निकायोंमेंसे तीन निकायों में सात प्रकारका कटक-सैन्य है और ज्योतिषीको छः प्रकारका कटक है, उनमें पहला प्रकार गन्धर्वका है। दूसरे प्रकारमें नृत्य करनेवाले देवोंका सैन्य, तीसरे प्रकारमें अश्वरूप सैन्य, चौथे प्रकारमें गजों ( हाथियों )का सैन्य, पांचवाँ रथ सैन्य और छठा पैदल सैन्य; यह छः प्रकारका सैन्य तो मानो सामान्यतः सर्व इन्द्रोंके पास होता ही है। उनमें भी वैमानिकनिकायवर्ती इन्द्रोंके पास सात प्रकारका सैन्य होनेसे सातवाँ वृषभका सैन्य अधिक होता है और अधोलोकवासी भवनपति तथा व्यन्तरेन्द्रोंका सातवाँ प्रकार महिष (भैंसों )के सैन्यका है। केवल ज्योतिषीके इन्द्रोंके पास छः प्रकारका सैन्य होता है। शंका-इन्द्र महाराजको सैन्यकी आवश्यकता ही क्या है ? समाधान-जिस तरह राजाके समर्थ होने पर भी शत्रुके पराभवमें सैन्यकी सहायता आवश्यक है, उसी तरह इन्द्रमहाराजा भले ही समर्थ हों तथापि देवलोकमें देवांगना आदिके अपहरणके विषयमें होते हुए भयंकर युद्धोंके प्रसंग पर इस सैन्यकी आवश्यकता पड़ती है। शंका–देव किसी भी प्रकारका चाहे जैसा रूप लेनेमें समर्थ-शक्तिमान होते हैं / फिर अमुक प्रकार रखनेका प्रयोजन क्या है ? समाधान-एक राजाके राज्यमें गन्धर्व, नट, गज (हाथी), अश्वादि सभी होते हैं, परन्तु लड़ाईके प्रसंग पर तो राजाके जो अश्व, गजादि होते हैं वे ही उपयोगमें आते हैं। सेठ-साहूकारोंके या अन्योंके घोड़े लड़ाई में उपयोगी नहीं होते हैं, इसलिए सैन्यके लिए स्वतन्त्र देवोंकी अपेक्षा अवश्य होती है और वह इसलिए कि शीघ्र उपयोगी भी हो सकें / [46 ] (प्र० गा० सं० 9) अवतरण-प्रत्येक इन्द्रके वायस्त्रिंशक आदि देवोंकी कितनी संख्या होती है ? इसकी प्ररूपणा करते हैं.. तित्तीस तायतीसा, परिसतिआ लोगपाल चत्तारि / अणियाणि सत्त सत्त य, अणियाहिव सव्वइंदाणं / / 47 // [प्र० गा० सं० 10]