________________ 104 ] बृहत्संग्रहणीरत्न हिन्दी [ गाथा 42-43 यह 12 अष्टरुचक स्थान वही 'समभूतला-रुचकपृथ्वी' इन रुचकप्रदेशोंसे ऊर्ध्व-अधो दिशा तथा विदिशाओंकी उत्पत्ति है, जिसके लिए आवश्यकनियुक्तिमें कहा है कि 'अट्ठपएसो रूअगो, तिरियलोगस्स मज्झयारंमि / . एस पभवो दिसाणं एसेव भवे अणुदिसाणं // 1 // [ 4.-41] . अवतरण-वाणव्यन्तर देवोंके सोलह इन्द्रोंके नाम कहते हैं। संनिहिए सामाणे, द्धाइ विहाए इसी य इसिवाले / ईसर-महेसरे विय, हवइ सुवत्थे विसाले य // 42 // हासे हासरई वि य, सेए य भवे तहा महासेए / पयगे पयगवई वि य, सोलस इंदाण नामाई // 43 // - (प्र० गा० सं०६) गाथार्थ-विशेषार्थके अनुसार // 42-43 // विशेषार्थ-वाणव्यन्तरके आठों निकायोंके उत्तर भेदसे सोलह इन्द्र हैं। उनमें पहले अणपन्नी निकायके दक्षिण इन्द्रका नाम संनिहित इन्द्र है और उत्तरेन्द्रका नाम सामान इन्द्र है, दूसरे पणपन्नी निकायके दक्षिणेन्द्रका नाम धाता और उत्तरेन्द्रका विधाता, तीसरे ऋषिवादी निकायके दक्षिणेन्द्रका ऋषिइन्द्र और उत्तरेन्द्रका ऋषिपाल इन्द्र / चौथे भूतवादी निकायका दक्षिणेन्द्रका ईश्वरइन्द्र और उत्तरदिशाका महेश्वर इन्द्र / पाँचवें कंदित निकायका दक्षिणेन्द्र सुवत्स इन्द्र और उत्तरदिशाका विशाल इन्द्र, छठे महाकंदित निकायका दक्षिणेन्द्र हास्य और उत्तरेन्द्र हास्यरति, सातवें कोहंड निकायका दक्षिणेन्द्र श्वेत और उत्तरदिशाका महाश्वेत इन्द्र और आठवें पतंग निकायके दक्षिणेन्द्रका नाम पतंग और उत्तरदिशाका पतंगपति इन्द्र, इस तरह सोलह इन्द्र जानें / [ 42-43 ] (प्र० गा० सं०६) इस तरह भवनपतिके दसों निकायोंके मिलकर बीस इन्द्र तथा व्यन्तर और वाणव्यन्तरके आठ आठ निकायोंके मिलकर सोलह निकायोंके बत्तीस इन्द्र, ज्योतिषी निकायके दो इन्द्र और वैमानिक निकायके दस इन्द्र अर्थात् चारों निकायोंके कुल चौसठ इन्द्र हुए। ये इन्द्र अवश्य समकितवंत होते हैं और परमकारुणिक जगत्जन्तुका कल्याण चाहनेवाले परमतारक तीर्थंकर परमात्माओंके जन्मकल्याणकादि अवसरों पर की जाती उस उस प्रकारकी उचित भक्तिसेवामें सदा तत्पर होते हैं। . -यहां वाणन्यन्तरनिकायका अधिकार समाप्त हुआ / 126. रुचकोंकी स्थापना किस प्रकार है ? रत्नप्रभा पृथ्वीके दोनों लघुक्षुल्लक प्रत में ऊर्ध्व और अधःस्थानवर्ती गोस्तनाकारमें विद्यमान अष्टरुचक-प्रदेशोंका स्वतंत्र संस्थान या परस्पर संस्थान किस तरह समझना ? क्या नीचे :: ऐसे चार रुचक स्थापित करके उसके ऊपर ही दूसरे ऊर्ध्ववर्ती चार रुचक स्थापित करें या दूसरी तरहसे ? यह विचारणीय है, अतः यहाँ स्पष्ट निर्णय लिखा नहीं जा सकता /