________________ दूसरे ही दिन जावड़शा ने चक्रेश्वरी देवी का ध्यान प्रारम्भ कर दिया / एक-दो-तीन दिन करते-करते बीस दिन व्यतीत हो गए / अन्त में देवी ने प्रत्यक्ष होकर कहा- मैं तेरे मनोरथ को जानती हूँ | तक्षशीला नगरी की धर्मचक्र सभा के अगले भाग में एक भोयरा है | उस भोयरे में भगवान ऋषभदेव की प्रतिमा है / वह तू वहाँ से लेकर सिद्धगिरि पर विराजमान कर / _ देवी के कथनानुसार जावड़शा तक्षशीला पहुँच गया / वहाँ के राजा जगन्नमल्ल को बहुत भारी अमूल्य भेंट देकर प्रसन्न किया और गुप्त भोयरे में रही हुई प्रतिमा की माँगनी की / राजा ने प्रसन्न मन से प्रतिमा ले जाने की स्वीकृति दे दी। बाहुबलीजी ने जिस प्रतिमा का ध्यान किया था ऐसा प्रभु ऋषभदेव का बिंब आज तक अज्ञात अवस्था में था / उसे जावड़ ने भोयरे में से प्रकट किया और रथ में विराजमान करके महुवा की तरफ प्रयाण कर दिया / धीर वन प्रदेश के विकट मार्ग में प्रतिमाजी को लेकर आते हुए बहुत कष्टों का सामना करना पड़ा / जिससे उस समय नव लाख (9 लाख) द्रव्य का खर्च हुआ / चलते-चलते एक शुभ दिन, शुभ घड़ी में जावड़शा जिनबिंब को लेकर मधुपुरी पहुँच गया / योगानुयोग उसी दिन 10 पूर्वधर आचार्यप्रवर श्री वजस्वामीजी महाराज भी महुवा पधारे / जावड़शा ने उपाश्रय जाकर गुरुवन्दन करके, सुखशान्ति पूछकर अपने अन्तर की बात उनको कही / गुरुदेव ने उसे आश्वासन दिया / ___ उसी समय जावड़शा के मुनीम ने आकर बधाई देते हुए कहा- सेठजी ! प्रदेश में व्यापार के लिए गए हुए अपने व्यक्ति तथा वाहण सुरक्षित रूप से वापस आ गए हैं / सब कुछ मिलाकर बारह (12) वाहण भर जाए इतना नगदी सोना भरकर लाए हैं / ___ यह बात अभी पूरी ही नहीं हुई थी कि एक दिव्य पुरुष (देव) वहाँ पर प्रगट हुआ | उसने सूरिजी को भावपूर्वक वन्दन करके कहा- गुरुदेव मैं कपर्दी 86