________________ कन्या के साथ उसकी शादी कर दी / एक दिन ऐसा आया कि भावड़शा का जीवन दीप बुझ गया / पिता के स्वर्गवास का जावड़शा को अति आघात लगा / फिर भी उसने मधुमति का सारा कार्यभार सम्भाल लिया / एक दिन मलेच्छ लोगों ने मधुमति पर छापा मारा और खूब सम्पत्ति को लूट लिया / बहुत लोगों को कुटुम्ब सहित उठाकर अनार्य देश में ले गए / इसमें जावड़शा भी फँस गया / अनार्य देश में रहकर भी जावड़शा ने धर्म श्रद्धा को स्थिर रखा और अपनी बुद्धि की कुशलता से मलेच्छ लोगों को भी प्रभावित कर दिया / तब वहाँ के राजा ने जावड़ को स्वतन्त्र व्यापार करने की आज्ञा दे दी / वहाँ पर उसने खूब धन कमाया और एक जिन मन्दिर का निर्माण कराया / बाहर से आने वाले अपने साधर्मिक जैन भाइयों को सहायता करके उनको भी वहाँ पर स्थिर किया / एक बार इसी प्रदेश में विहार करते-करते जैन मुनि पधारे / सभी लोग उनका प्रवचन सुनने के लिए गए / गुरु महाराज ने प्रवचन में श्री सिद्ध गिरिराज की अपूर्व महिमा का वर्णन किया और बाद में दुखित हृदय से कहा कि हे भव्य प्राणियों ! आज इसी पवित्र गिरिराज पर मिथ्यात्वी बना हुआ कपर्दि यक्ष घोर आशातना कर रहा है / गिरिवर के ऊपर स्थान-स्थान पर मांस के टुकड़े बिखेर दिए हैं, हड्डियों का ढेर जगह-जगह पर लगा दिया है, रुधिर की नदियाँ बहा दी हैं, पचास योजन के अन्दर यदि कोई आ जाता है तो उसे मार देता है / ऐसी पावन सिद्धगिरि की भूमि पर कोई भी भव्यात्मा नहीं जा सकता है / ऐसे कष्टमय समय में जावड़शा ही इस तीर्थ का उद्धार करने में समर्थ होगा / जावड़शा ने खड़े होकर कहा- हे गुरुदेव ! आपश्रीजी मेरा मार्ग दर्शन कीजिए, मैं किस प्रकार इस तीर्थ का उद्धार करूँ / .. गुरुदेव ने कहा- हे जावड़शा ! तुम चक्रेश्वरी देवी की आराधना करो वह देवी ही तुम्हें मार्ग बताएगी और तुम्हारा सारा काम पूर्ण करेगी / 85