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________________ यक्ष नाम का नूतन देव हूँ | आपने पूर्व जन्म में मुझ पर बहुत बड़ा उपकार किया था / मैं पूर्व भव में बहुत दारू (शराब) पीता था / आपके दारू पर दिए हुए प्रवचन को सुनकर मैं बहुत प्रभावित हो गया था / मेरी दारू त्याग की बहत इच्छा होने पर भी छोड़ नहीं सकता था / आपश्रीजी ने मुझे ऐसी प्रतिज्ञा दी कि जब तक तुम्हारे इस कपड़े को या डोरी को गाँठ लगी रहे तब तक दारू नहीं पीना, गाँठ खोलने के बाद ही दारू पी सकते हो / (इस प्रतिज्ञा अर्थात् प्रत्याख्यान को जैन शास्त्रों में गंठसि का पच्चक्खाण कहा गया है) आपश्री के वचनानुसार मैंने इसका पालन चालू कर दिया / एक बार वह गाँठ महागाँठ बन गई / बहुत खोलने पर भी वह नहीं खुली / दारू न पीने के कारण मेरी नसें खिंचने लगी / मेरे परिवार वालों ने प्रतिज्ञा तोड़ने के लिए मुझे परेशान किया, परन्तु मैं अपनी प्रतिज्ञा पालन में दृढ़ रहा, अन्त में मेरे प्राण निकल गए / गुरुदेव आपने मेरे जीवन को सुधार दिया / गुरुदेव कमाल हो गया | दारूड़िया जीव देवलोक में देव बन गया / यह सब आपका ही उपकार है / अब मैं आपश्रीजी के इस ऋण से मुक्त होना चाहता हूँ / कृपा करके मुझे कोई आदेश दीजिए / गुरुदेव ने कहा- हे यक्ष ! तुमको शत्रुञ्जय उद्धार में सहायक बनना है / यही ऋणमुक्ति का उपाय है / - शत्रुञ्जय महातीर्थ को पुराने मिथ्यात्वी कपर्दी यक्ष ने दारू-मांस-विष्टा-प्रक्षेप आदि से भ्रष्ट कर दिया था इस चिन्ता में आचार्यश्रीजी अति व्यथित थे / प्रचण्ड आत्मबल के स्वामी होने पर भी उनको किसी महापुण्यवान श्रावक की जरूरत लगती थी / जिनशासन के बहुत कार्य अकेली साधना से नहीं होते अपितु साधनों की भी जरूरत पड़ती है / शत्रुञ्जय उद्धार की सुनहरी घड़ी सामने खड़ी थी / सुन्दर समन्वय था / ___ सूरिजी का आध्यात्मिक बल, जावड़ शा का अर्थद्रव्य रूपी भौतिक बल, और नूतन कपर्दी यक्ष का देवी बल | आचार्यश्रीजी ने जावड़ को कहा- हे महाभाग्यशाली ! तेरे हाथ से शत्रुञ्जय तीर्थ का तेरहवाँ उद्धार होने वाला है | उसमें मैं निमित्त बनूँगा / कपर्दी यक्ष 87
SR No.004266
Book TitleItihas ki Dharohar evam Karm Prashnottari
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPragunashreeji, Priyadharmashreeji
PublisherPragunashreeji Priyadharmashreeji
Publication Year2014
Total Pages254
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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