________________ . इस महान तीर्थ की विधिपूर्वक यात्रा करने से आत्मा शीघ्र ही भवबन्धन से मुक्त हो जाती है / सर्वश्रेष्ठ इस तीर्थ की यात्रा छःरी के पालनपूर्वक होनी चाहिये / 1. पादचारी- गुरु भगवन्त के सान्निध्य में पैदल यात्रा करना चाहिए / 2. भूमि संथारी- गुरु महाराज के समान भूमि पर रात्रि में संथारे पर सोना चाहिए / 3. एकल आहारी- इस तीर्थ की यात्रा के दरम्यान कम से कम एकासने का तप करना चाहिए / 4. सचित्त परिहारी- यात्रा मध्य सचित्त वस्तु (जीव वाली वस्तु) का त्याग करना चाहिये / 5. आवश्यकधारी- यात्रा दरम्यान दोनों समय प्रतिक्रमण अवश्य करना चाहिये 6. ब्रह्मचारी- मन-वचन-काया से ब्रह्मचर्य का पालन करना चाहिये / इस अवसर्पिणीकाल में ऋषभदेव प्रभु के पुत्र भरत चक्रवर्ती ने इस तीर्थ का प्रथम उद्धार कराया था, इस तीर्थ पर ऋषभदेव प्रभु का मन्दिर निर्माण कराया था तथा इस तीर्थ का प्रथम छःरी पालित यात्रा संघ निकाला था / पापी को भी पुनीत बनाने वाले, पतित को पावन बनाने वाले ऐसे शत्रुञ्जय तीर्थ की महिमा का गुणगान जितना किया जाए उतना ही कम है | महाविदेह क्षेत्र में विचरण कर रहे श्री सीमन्धरस्वामीजी परमात्मा ने भी स्वयं अपने मुख से इस तीर्थ की महिमा का गुणगान किया है / इस शाश्वत एवं पुनीत तीर्थ पर अलग-अलग महानुभावों ने अपनी सम्पत्ति का सद्व्यय करके 9 ट्रॅकों का सुन्दर निर्माण करवाया / 9 कों के नाम इस प्रकार है- 1. मोतीशाह की ट्रॅक, 2. सदासोम की ट्रॅक, 3. छीपावसी की ट्रॅक, 4. उजमफई नन्दीश्वरजी की ट्रॅक, 5. हेमाभाई की ट्रॅक, 6. साकरवसही 63