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________________ प्रायः ए गिरि शाश्वता, रहेगा काल अणंत, शत्रुञ्जय महातम सुनी, नमो शाश्वत गिरि संत शत्रुञ्जय तीर्थ का विस्तार पहले आरे में 80 योजन था / दूसरे आरे में 70 योजन था / तीसरे आरे में 60 योजन था / चौथे आरे में 50 योजन था / पाँचवें आरे में 12 योजन प्रमाण है / छट्टे आरे में 7 हाथ रहेगा। ऋषभदेव प्रभु के समय शत्रुञ्जय तीर्थ का मूल विस्तार 50 योजन और ऊँचाई 8 योजन थी। शत्रुजयी नदी विमलगिरि के दोनों शिखरों के मध्य पवित्र शत्रुञ्जय नदी है / एक बार भरत नरेश्वर ने इन्द्र को पूछा- यह कौनसी नदी है ? इन्द्र ने कहा- हे चक्रवर्ती ! यह शत्रुञ्जय नदी है / यह नदी इस लोक में गंगा नदी से अधिक पवित्र और फलदायक है / इसके जल स्पर्श से क़ान्ति, कीर्ति, लक्ष्मी, बुद्धि, धृति, पुष्टी और समाधि की प्राप्ति होती है / और कई सिद्धियाँ वश में हो जाती है। इस सरिता की मिट्टी का विलेपन करने से शरीर के बड़े-बड़े रोगों का भी नाश हो जाता है / इस पवित्र नदी के किनारे पर रहे हुए वृक्षों के फलों का जो स्वाद भी ले लेता है तथा छः (6) मास तक इस नदी का जो जल पीता है, उसके वात, पित्त, कुष्ठ आदि रोग नष्ट हो जाते हैं / शरीर स्वर्ण जैसी कान्ति वाला हो जाता है। 62
SR No.004266
Book TitleItihas ki Dharohar evam Karm Prashnottari
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPragunashreeji, Priyadharmashreeji
PublisherPragunashreeji Priyadharmashreeji
Publication Year2014
Total Pages254
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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