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________________ बंगाल) से जगत सेठ का परिवार सम्मेतशिखरजी की यात्रा करने आया / उनके साथ वहाँ के यतिजी तथा अन्य सैकड़ों लोग थे / शिखरजी की यात्रा के पश्चात् सेठ ने यतिजी से कहा- इस महान पवित्र तीर्थ की दुर्दशा देखी नहीं जाती / यति बोले- सेठजी ! आप तो समर्थशाली हैं, तीर्थ का जीर्णोद्धार करा सकते हैं / सेठ ने कहा- यतिवर ! जरा इस तरफ देखिए- इस पवित्र तीर्थ भूमि की तलहटी पर पशुबलि भी हो रही है / करुणावतार की निर्वाण भूमि पर यह हिंसा का नग्न ताण्डव ! यहाँ पर यह बिल्कुल नहीं होना चाहिए / कृपया इस हिंसा को रोकने का कोई उपाय बताइए / यतिजी बोले- सेठजी ! यदि हमने इन लोगों को जबरदस्ती रोकने का प्रयास किया तो ये गाँव के सारे मूर्ख लोग उपद्रव मचाएँगे / कुछ देर ध्यान लगाकर यति ने पुनः कहा- श्रेष्ठीवर! मुझे लगता है कि यह स्थान क्षेत्रपाल भोमियाजी का है / यह पार्श्वनाथ भगवान के परम भक्त हैं / आप अट्ठम तप करके उनकी आराधना कीजिए | वे प्रकट होकर अवश्य उपाय बताएँगे / यतिजी के कथनानुसार सेठजी ने मन्दिर के उपासना कक्ष में तीन दिन उपवास करके मन्त्र जाप किया / तीसरे दिन रात्रि को एक आवाज आई अर्थात् व्यन्तर देव योनि में उत्पन्न हुआ युवराज चन्द्रशेखर उसने अदृश्य रूप से कहायह स्थान मेरा है तीर्थ के उद्धार से पहले मेरा उद्धार करो / तीन बार इस प्रकार आवाज आने से सेठ ने सिर उठाकर ऊपर देखा तो उन्हें एक तेजस्वी मुखाकृति दिखाई दी / सेठ ने हाथ जोड़कर पूछा- आप कौन हैं ? आपका स्थान कहाँ है ? मुझे क्या करना चाहिए ? तब आवाज आई- कि मैं इसी तीर्थ क्षेत्र का सेवक हूँ, वटवृक्ष के नीचे मेरा स्थान है, वहाँ पर हिंसा रोको और मुझे स्थापित करो / जगत सेठ ने हाथ जोड़कर कहा- हे क्षेत्रपाल देवता ! आपके आदेश का पालन होगा / प्रातःकाल सेठ ने सम्पूर्ण घटना यतिवर्य को बताई यतिजी ने कहा- वटवृक्ष के नीचे तो भवानी देवी की स्थापना की हुई है / उसे यहाँ से उठाओ और इस स्थान की शुद्धि करो / 54
SR No.004266
Book TitleItihas ki Dharohar evam Karm Prashnottari
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPragunashreeji, Priyadharmashreeji
PublisherPragunashreeji Priyadharmashreeji
Publication Year2014
Total Pages254
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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