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________________ तत्पश्चात् सेठ ने सभी लोगों को समझाया कि यह स्थान भवानी देवी का नहीं है। यहाँ का अधिष्ठायक कोई अन्य देव है / उन्हें यह पशुबलि आदि बिल्कुल पसन्द नहीं है / यदि वे कुपित हो गए तो तुम सबका अनिष्ट कर देंगे / भयभीत होकर लोगों ने कहा- कहिए, अब हम क्या करें ? हमें कुछ भी समझ में नहीं आता / आपको जो उचित लगे वही उपाय कर लीजिए / सेठजी ने वहाँ से भवानी माँ की मूर्ति को आदरपूर्वक उठाया और नदी के किनारे इमली के वृक्ष के नीचे उसे स्थापित कर दिया / फिर यतिजी ने हवन आदि किया / मन्त्र पाठों को बोल कर वटवृक्ष के नीचे स्थान शुद्धि करवाई / ___ उसी रात को जगत सेठ जी को स्वप्न में एक दृश्य दिखाई दिया / विशाल पर्वतों के बीच एक तेजस्वी मुखाकृति प्रगट होकर कुछ बता रही है / मेरा स्थान यही वटवृक्ष है, मैं तीर्थ की सेवा और रक्षा करता हूँ | तत्क्षण सेठ की निद्रा टूटी और विचार करने लगा कि अवश्य इस वटवृक्ष के नीचे ही क्षेत्रपाल का स्थान है / तभी पुनः उसके सामने वही दृश्य उभरता है / सेठ ने हाथ जोड़कर कहा- हे क्षेत्रपाल देव ! आपकी इच्छानुसार ही सब कार्य होगा / प्रात:काल होने पर सेठजी से यतिजी को स्वप्न की सारी बात कही और पूछा हे यतिवर्य ! इस दृश्य का क्या अर्थ है ? . सेठ की बात को सुनकर यतिजी ने पूजन किया, मन्त्र पाठ करके अपने .. इष्ट देव का स्मरण किया / इष्ट देव प्रकट हुए, उन्होंने बताया कि पूर्व काल में चन्द्रशेखर नामक राजकुमार था / इस तीर्थ का वन्दन तथा स्पर्श करने आया था, वहाँ पर अचानक उसकी मृत्यु हो गई / यहाँ पर ही उसका अग्नि संस्कार किया गया / वही इस भूमि के रक्षक भोमियाजी (भैरव) देव हैं | तत्पश्चात् यतिजी ने सेठजी को कहा- भैरव देव ने आपको जिस रूप में दर्शन दिया वही उनका स्वरूप है / यहाँ पर उसी स्वरूप की स्थापना करने का आदेश मिला है। फाल्गुन मास की पूर्णिमा के शुभ दिन और शुभ मुहूर्त में सेठ ने वटवृक्ष के 55
SR No.004266
Book TitleItihas ki Dharohar evam Karm Prashnottari
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPragunashreeji, Priyadharmashreeji
PublisherPragunashreeji Priyadharmashreeji
Publication Year2014
Total Pages254
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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