________________ श्रीपाल-मयणासुन्दरी को यहाँ के ही आदिनाथ जिनालय में चमत्कार के रूप में हाथ में बिजोरा और माला की प्राप्ति हुई थी। आचार्यश्री सिद्धसेन दिवाकरजी ने गुप्तवेश में यहाँ के कुण्डगेश्वर मन्दिर में पधार कर कल्याण-मन्दिर स्तोत्र की रचना करके अवन्ती पार्श्वनाथ प्रभु को प्रकट किया था / इसी नगर में महाराजा भोज, महा पराक्रमी, पर-दुःखभंजन महाराजा विक्रमादित्य, कवि कालीदास जैसे पण्डित इस धरती की गोद में हुए / ऐसी उज्जैनी नगरी में वीशा ओसवाल जाति का धर्मप्रिय नामका एक सेठ रहता था / वैसे तो वह सेठ पाली राजस्थान का वतनी था परन्तु व्यापार हेतु वह वहाँ पर ही रहता था / विशाल प्रसिद्धि तथा दिव्य समृद्धि का वह स्वामी था / आराधना और धर्मानुष्ठानों से उसका जीवन भरपूर था / . जैसा सेठ था वैसी ही उसकी सेठानी थी / सेठानी का नाम था जिनप्रिया / जैसा नाम था वैसे ही दोनों में गुण थे / परमात्मा और परमात्मा द्वारा प्ररूपित धर्म दोनों को अतिशत प्रिय था | .. दोनों का जीवन सुखमय और धर्ममय व्यतीत हो रहा था / संसारिक सुखों को भोगते हुए एक दिन सेठानी गर्भवती हुई / गर्भकाल व्यतीत होने पर वि. सं. 1541 महासुदी पंचमी (वसंत पंचमी) के शुभ दिन सेठानी ने एक तेजस्वी पुत्ररत्न को जन्म दिया / बालक के मुख को देखकर माँ के आनन्द का, पिता की प्रसन्नता तथा स्वजनों के हर्ष का पार नहीं था / एक गोद से दूसरी गोद में क्रीड़ा करता हुआ बड़ा हो रहा था / माता-पिता ने उस बालक का नाम रखा माणेक | माणेक वास्तव में माणिक रत्न जैसा ही तेजस्वी था / उसका रूप उसकी कान्ति उसका तेज अदभुत ही था / माता-पिता के सुन्दर संस्कारों को ग्रहण करता हुआ माणेक जैसे-जैसे बड़ा हो रहा था वैसे-वैसे उसकी प्रतिभा, चतुराई भी बढ़ रही थी। 19