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________________ संसार में सभी दिन एक जैसे किसी के नहीं रहते / दिन के साथ रात, उदय के साथ अस्त, प्रकाश के साथ अंधकार रहा ही हुआ है / माणेकचन्द कुछ बड़ा हुआ कि उसके जीवन में एक करुण घटना घटित हो गई, जिसने माणेक के जीवन निर्माण में कोई कमी नहीं रखी थी ऐसा उसका धर्मनिष्ठ पिता सेठ धर्मप्रिय का अचानक एक दिन निधन हो गया / बाल्यावस्था में ही पिता की छाया माणेक के सिर से उठ गई / युवावस्था में ही जिनप्रिया पत्नी का आधार संसार से विदा हो गया / जिनप्रिया बहुत समझदार और धर्मनिष्ठ थी / जीव-जगत और जीवन के स्वरूप को अच्छी तरह जानती थी / पति के विरह की वेदना तो उसे थी परन्तु अब वह हिम्मतवान भी बन गई / पति विरह के शोक के बादलों को दूर करके अब वह माणेक के जीवनरूपी बाग को सजाने में तत्पर बन गई / अब उसने अपने जीवन को तप, त्याग और वैराग्य में जोड़ दिया / अधिक समय अपने ही मकान में बनाए हुए गृहमन्दिर में भक्ति और पूजा में व्यतीत करने लगी / ___ बालक माणेक के लिए अब उसकी माँ ही सर्वेसर्वा थी / उसके हृदय में माँ के प्रति असीम भक्ति भाव था / माता की आज्ञा को देवाज्ञा के समान मानना था, माता और पुत्र का प्रेम समस्त उज्जैन नगरी के लिए एक आदर्श रूप हो गया था / बड़ा होने पर जिनप्रिया एक उपाध्याय के पास व्यवहारिक ज्ञान प्राप्त करने हेतु तथा उपाश्रय में गुरु भगवन्त के पास धर्म ज्ञान प्राप्त करने के लिए माणेक को भेजने लगी और घर में धर्म सिंचन का कार्य तो चालू ही था / इस प्रकार अभूतपूर्व त्रिवेणी संगम ने माणेक को जीवन को धर्मी, संस्कारी तथा व्यवहारकुशल बना दिया / ____ अब माणेक युवावस्था को प्राप्त हो गया / पिता की सम्पत्ति का मालिक तो था ही, साथ ही साथ उसने अपनी बुद्धि और चतुराई से अपने व्यापार के विस्तार को इतना बढ़ा लिया कि उज्जैनी के श्री श्रेष्ठी, श्रीमन्तों की श्रेणी में अग्रगण्य स्थान प्राप्त कर लिया / सभी लोग उसे माणेक शा के नाम से पुकारने लंगे। 20
SR No.004266
Book TitleItihas ki Dharohar evam Karm Prashnottari
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPragunashreeji, Priyadharmashreeji
PublisherPragunashreeji Priyadharmashreeji
Publication Year2014
Total Pages254
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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