________________ मैंने उसे क्यों मार डाला ? खूब पश्चात्ताप दिल से हुआ मन-तन रोने लगा / इसका परिणाम यह होगा जब कर्म उदय में आयेगा तब अपना प्रभाव बहुत कम दिखायेगा / इतना ही नहीं कर्म बन्ध के बाद अगर उस निमित्त से दान-पुण्य-प्रभु भक्ति की तो वह दुःख, दुःख रूप में न रहकर सुख रूप में परिवर्तित हो जाएगा / दुःख का सुख में बदल जाना संक्रमण करण, सुख का दुःख में बदल जाना वह भी संक्रमण करण | प्रश्न- 197. शुभ-अशुभ सुख-दुःख में कैसे परिवर्तित होता है ? उत्तर- मान लीजिये, परमात्म-भक्ति, गुरु-वैयावच्च, सुपात्रदान, सामायिक प्रतिक्रमणादि शुभ क्रियाओं से बन्ध करण हुआ उस समय सुखआदेय-यश की प्राप्ति हो ऐसा कर्म बान्धा परन्तु कर्म बान्धने पर तुरन्त उदय में नहीं आते बीच में (Golden Peried) शान्तिकाल मिलता है / उस शान्तिकाल में अगर किए हुए धर्म कार्यों का पश्चात्ताप कर लिया, परमात्मा की आशातना-गुरुभगवन्तों की निन्दा-धर्मक्रियाओं में अनादर आदि कार्य करने में आ गये तो संक्रमण करण द्वारा शाता-अशाता में- आदेय-अनादेय मेंयश-अपयश में बदल जाएगा / इसीलिए तो परमात्मा ने कहा है कि 'समयं गोयम मा पमायए' / इसी रहस्य को उद्घाटित किया प्रश्न- 198. तीसरे करण की व्याख्या समझाएँ ? उत्तर- तीसरे करण का नाम है उदीरणा / उदीरणा अर्थात् कर्मों को समय से पहले ही उदय में लाने के अध्यवसाय को उदीरणा कहते हैं | आत्मा के उत्तम पुरुषार्थ से ही . उदीरणा होती है / प्रश्न- 199. किस कर्म की उदीरणा करने का प्रयत्न करना चाहिए ? 234