________________ उत्तर जब अपना शरीर अनुकूल हो, सशक्त हो, मन समाधिस्थ रह सकता हो तब दुःखों को, प्रतिकूलताओं को सामने से निमन्त्रण देकर ढेर सारे पापकर्मों की उदीरणा कर लेनी चाहिए / ताकि अपनी अनुकूल परिस्थिति में उदीरणा द्वारा कर्मों का उदय में लाकर पापकर्मों को समताभाव से भोग कर समाप्त कर सकते हैं / जैसे भगवान महावीरस्वामीजी ने 127 वर्ष के साधना काल में 11% वर्ष से अधिक चौविहार उपवास किए / अब मेरा शरीर स्वस्थ है चलो सामने से पापकर्मों को उदय में लाकर प्रसन्नता से सहन करूँ जिससे नए कर्मों का बन्ध नहीं होगा तथा पुराने कर्म नष्ट हो जाएँगे। प्रश्न- 200. भगवान महावीरस्वामीजी ने उदीरणा हेतु कौन-कौन से दुःख सहे ? 1. लोगों के ना कहने पर भी चण्डकौशिक को तारने के लिए परमात्मा वहाँ गए / डंक की वेदना को सहा / . 2. शूलपाणी यक्ष के, संगम देवता के, ग्वालों के उपसर्गों को समताभाव से सहन किया / उत्तर 3. कर्मों की विशेष उदीरणा हेतु अनार्य देश में गए / लोगों ने पत्थर मारे, गालियाँ दी, भयानक दुःखों को जानबूझकर सहन किया / अतः शान्तिकाल (Golden Peried) में प्रभु ने अनेकानेक कर्मों की निर्जरा की / प्रश्न- 201. पापकर्मों की उदीरणा के लिए क्या-क्या कार्य करने चाहिए ? पापकर्मों की उदीरणा के लिए आज से ही शक्यतानुसार तप धर्म की आराधना करें / जीवन को त्याग मय बनाएँ / नंगे पाँव चलकर मन्दिर-उपाश्रय जाएँ / गर्मी-सर्दी को सहन करें / हो सके तो उत्तर 235