________________ उत्तर मन-वचन-काया द्वारा राग-द्वेष के अध्यवसायों से आत्मा कार्मण रजकणों को खींच कर अपने ऊपर चिपका लेती है तो आत्मा स्वयं . कर्मों को बान्धती है / इन कर्मों को बान्धने में बन्धन करण कारण कहा जाता है / अर्थात् कर्मबन्ध में जो अध्यवसाय वहीं बन्धन करण / प्रश्न- 194. बन्धन करण के बाद दूसरे करण का वर्णन करें ? उत्तर- बन्धन करण द्वारा जो आत्मा में कर्मों का बन्ध हुआ, उससे जो सुख-दुःख का अनुभव होना था उस कर्म के स्वभाव में आत्मा के अध्यवसायों से जो परिवर्तन आता है उन अध्यवसायों को संक्रमण करण कहते हैं। प्रश्न- 195. संक्रमण का परिभाषित अर्थ कहें ? उत्तर- संक्रमण यानि परिवर्तन होना / सुख का दुःख में, दु:ख का सुख में | संक्रमण सदैव अपने ही प्रकृतियों में होता है | साता का असाता में हो सकता है परन्तु वेदनीय का मोहनीय या नामकर्म में नहीं हो सकता / परन्तु दुःख को सुख में और सुख को दुःख में बदला जा सकता है। प्रश्न- 196. उदाहरण देकर समझाएँ संक्रमण करण को ? उत्तर- मान लीजिए किसी व्यक्ति ने रात्रि के समय बारम्बार आ रहे मच्छर से परेशान होकर मच्छर पर जोर से हाथ मारा कि वह मच्छर तड़प-तड़प कर मर गया, उस समय तो बन्धन करण हुआ / उसका परिणाम यह आयेगा कि उसे भी बड़ी बिमारी द्वारा तड़प कर मरना पड़ेगा / यह निश्चित सिद्धान्त है किसी को पीड़ा दी, दुःख दिया उसके परिणाम स्वरूप तुम्हें भी अवश्य दु:ख मिलेगा ही / परन्तु उसके पश्चात् मन को बहुत ग्लानि पैदा हुई अरे-रे 233