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________________ करने नहीं देता इसीलिए अन्तराय कर्म को भण्डारी की उपमा दी गई है। प्रश्न- 160. अन्तराय कर्म के कितने भेद हैं ? वर्णन करें / उत्तर अन्तराय कर्म के पाँच भेद हैं / 1. दानान्तराय- दान-अपनी वस्तु दूसरों को देना दान कहा जाता मान लीजिए- दान देने की तीव्र भावना हो, दान देने के लिए धन आदि की पूरी समर्थता भी है / सामने वाला दान स्वीकारने की भावना भी रखता है तो भी दान न कर सके तो समझना चाहिए कि दानान्तराय कर्म अपना प्रभाव दिखा रहा है | जैसे कपिला दासी / 2. लाभान्तराय- लाभ यानि प्राप्त, इच्छित वस्तु की प्राप्ति होनी लाभ कहा जाता है / मान लीजिए- किसी भी वस्तु की प्राप्ति की इच्छा हो उस वस्तु को अपने लिए देना भी चाहता हो तो भी अपने को इच्छित वस्तु की प्राप्ति न हो तो उसमें लाभान्तराय कर्म ही कारण है। 1. ऋषभदेव प्रभु को लाभान्तराय कर्म के उदय से एक वर्ष तक आहार नहीं मिला था / 2. श्रीकृष्ण के भाई ढंढण मुनि उनका भी लाभान्तराय कर्म का उदय था कि उनको गौचरी ही नहीं मिलती थी, इतना ही नहीं उनके साथ जो कोई अन्यमुनि भी गौचरी जाता तो उसे भी गौचरी नहीं मिलती / अपनी लब्धि से गौचरी मिले तो ही वापरना ऐसा निश्चय किया था / परन्तु लाभान्तराय कर्म के उदय से गौचरी प्राप्त नहीं होती दाता की इच्छा भी हो, स्वयं के लेने की इच्छा भी है, वस्तु भी तैयार है ढंढण मुनि वोहरने जाए तो लाभान्तराय कर्म 215
SR No.004266
Book TitleItihas ki Dharohar evam Karm Prashnottari
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPragunashreeji, Priyadharmashreeji
PublisherPragunashreeji Priyadharmashreeji
Publication Year2014
Total Pages254
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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