________________ आपका आयु दो क्षण बढ़ा लीजिए / भस्म राशि ग्रह का उदय होने वाला है / यदि आप की अमीय दृष्टि उस पर पड़ जाएगी तो खराब प्रभाव जैन शासन पर जो ग्रह बताने वाला है उस में कमी आ जाएगी / तब परमात्मा ने कहा- हे इन्द्र ! यह कभी भी नहीं हो सकता / तीर्थंकर भी अपनी आयुष्य को बढ़ाने में समर्थ नहीं है। प्रश्न- 117. आयुष्य कर्म कितने प्रकार का है ? उत्तर- आयुष्य कर्म 4 प्रकार है। 1. देव आयुष्य कर्म- देवलोक में स्वभाविक रूप से अत्यन्त सुख साधनों से भरपूर रत्नों के विमानादि रूप आवासों की व्यवस्था है। उसमें उत्पन्न होने वाले प्राणि वर्ग का शरीर अत्यन्त सुशोभित होने से उन्हें सुर-देव कहते हैं / उस देव के शरीर में जीव को जितने समय तक रहना पड़े उसे देवायुष्य कहते हैं / 2. मनुष्य आयुष्य कर्म- अढ़ीद्वीप में मनुष्यों का निवास है / मनुष्य के शरीर में जीव को जितने समय रहना पड़े उसे मनुष्य आयुष्य कहते हैं। 3. तिर्यंचायुष्य कर्म- नीचा मुख रखकर जो चलते हैं उन्हें तिर्यंच कहते हैं / यह अर्थ सभी तिर्यंचों में नहीं घटता परन्तु कुत्ताबिल्ली-बाघ-घोड़ा-हाथी-सिंह आदि तिर्यंचों में यह व्याख्या घटित होती है / तिर्यंच के शरीर में जितने समय तक रहना पड़े उसे तिर्यंच आयुष्य कहते हैं। 4. नरकायु कर्म- अधोलोक में 7 राजलोक प्रमाण क्षेत्र में स्वाभाविक रूप से ही अत्यन्त पीड़ाकारी अशुभ द्रव्यों से भरपूर नरकावास होते हैं / उसमें उत्पन्न होने वाले जीव नारक कहे जाते हैं / इन नारक 193