________________ * पाँचवाँ कर्म - आयुष्य कर्म प्रश्न- 113. आयुष्य कर्म किसे कहते हैं ? उत्तर- 1. जिस कर्म के उदय से आत्मा को नियत समय तक शरीर में रहना ही पड़े उसे आयुष्य कर्म कहते हैं | 2. जन्म लेने के पश्चात् भले कितनी भी मरने की इच्छा हो, तो भी जो जीवन को टिकाए रखने वाला कर्म आयुष्य कर्म है / प्रश्न- 114. आयुष्य कर्म आत्मा के कौन से गुण को ढंकता है ? उत्तर- आत्मा रूपी सूर्य के प्रकाश जैसा गुण है अक्षय स्थिति, आत्मा रूपी सूर्य के आगे आयुष्य कर्म रूपी बादल आ जाने से आत्मा को जन्म-मरण की परम्परा में से गुजरना पड़ता है / जन्म और मरण को कराने वाला आयुष्य कर्म है / यह कर्म अक्षयस्थिति नाम के गुण को ढंक देता है। प्रश्न- 115. जन्म और मरण किसे कहते हैं ? उत्तर- दूसरे भव में नया शरीर बनाने की क्रिया का नाम जन्म है / इस भव के स्थूल शरीर को छोड़ने की क्रिया का नाम मरण है / जन्म से लेकर मरण तक के काल को जीवनकाल अथवा आयुष्य कहते प्रश्न- 116. क्या आयुष्य कर्म को बढ़ाया जा सकता है ? . उत्तर- नहीं ! कार्तिक वदि अमावस्या का समय था / प्रभु महावीरस्वामीजी अन्तिम सोल प्रहर की देशना दे रहे थे / इन्द्र महाराजा भी परमात्मा का निर्वाण काल निकट जान कर आए हुए थे / इन्द्र महाराजा ने खड़े होकर दोनों हाथ जोड़कर प्रभु को विनन्ती की / हे प्रभो ! 192