________________ . के शरीर में जीव को जितना समय रहना पड़े उसे नरकायुष्य कहते हैं / इस प्रकार आयुष्य के 4 भेद हैं / प्रश्न- 118. क्या आयुष्य कर्म का बन्ध अन्य कर्मों की तरह ही होता है ? उत्तर- नहीं ! आयुष्य कर्म को छोड़कर शेष सात कर्मों का बन्ध प्रतिपल होता रहता है / परन्तु आयुष्य कर्म का बन्ध एक भव में एक बार ही होता है / इतना ही नहीं देवादि 4 प्रकार की आयुष्य में से किसी एक ही आयुष्य का बन्ध अपने-अपने परिणाम के अनुसार होता है / प्रश्न- 119. आयुष्य कर्म का बन्ध कब होता है ? उत्तर- देवता और नारकी जीव अपनी आयुष्य के 6 मास बाकी रहते हैं तब उनकी परभव की आयुष्य का बन्ध होता है / तिर्यंच तथा मनुष्य भव में जितनी आयुष्य लेकर आता है उसके तीन भाग करे तो, उसमें दो भाग चले जाने पर जब एक भाग बाकी रहता है तब आगामी आयु का बन्ध होता है / अगर उस तीसरे भाग में भी बन्ध न हुआ तो उसके भी तीसरे भाग में बन्ध होगा / यदि तब भी न हुआ तो अन्त में मृत्यु के पूर्व भी बन्ध करेगा | नए भव की आयु को बान्धे बिना किसी का . भी मरण नहीं होता (केवलज्ञानी को छोड़कर) केवलज्ञानी उसी भव में मोक्ष जाने वाले होते हैं इसलिए नए भव की आयु को नहीं बान्धते / प्रश्न- 120. आयुष्य बन्ध सम्बन्धी बात को विस्तार से समझाएँ ? उत्तर- मान लीजिए किसी तिर्यंच या मानव की आयु 81 वर्ष की हो तब आयु के दो भाग अर्थात् 54 वर्ष बीत जाने के बाद अपनी आयु का तीसरा भाग यानि 27 वर्ष रहे / तब आयु का बन्ध होगा / अगर 194