________________ समाप्त होंगे उस दिन चुम्बकीय शक्ति समाप्त हो जाने से कार्मण रजकण नहीं चोंटेंगे / कर्म रहित होकर आत्मा भगवान स्वरूप बन जायेगी / जन्म-मरण रहित हो जायेगी / प्रश्न- 20. आत्मा कार्मण वर्गणा कौन-सी ग्रहण करती है ? उत्तर- आत्मा लोह-चुम्बक समान है / जैसे लोह-चुम्बक अपने पास के ही क्षेत्र में रहे लोहे के कणों को ग्रहण कर अपनी ओर खींचता है, अपने ऊपर चिपका लेता है उसी प्रकार जो कार्मण वर्गणा अपने आस-पास शरीर के पास रहती है उन्हीं कार्मण वर्गणा को आत्मा ग्रहण करती है / जब वह कार्मण वर्गणा आत्मा के साथ चिपक जाती है तब वह कर्म कहलाती है / प्रश्न - 21. आत्मा में कर्मों को ग्रहण रूप चुम्बकीय शक्ति कब पैदा होती है ? अ उत्तर प्रत्येक जीवात्मा प्रत्येक समय कोई-ना-कोई प्रवृत्ति करता ही रहता है / कभी मन में कुछ-न-कुछ विचार करता है तो कभी वचन से कुछ-न-कुछ बोलता है, कभी काया से कोई-न-कोई प्रवृत्ति करता ही रहता है / मन-वचन-काया की शुभाशुभ प्रवृत्तियाँ आत्मा में रही राग-द्वेष की परिणति के साथ जब मिल जाती है तब यह (प्रवृत्ति + परिणति) दोनों चुम्बकीय शक्ति रूप बन कर कार्मण * वर्गणा के समूह को खींच लेती है तभी कार्मण वर्गणा कर्म रूप बन जाती है। कर्म अपना क्या प्रभाव दिखाते हैं ? प्रश्न-22. उत्तर आत्मा में जो अनन्तज्ञान का प्रकाश है, अपूर्व दर्शन शक्ति है, अनहद सुख की अनुभूति है, अतुल पराक्रम है वह सब दब चुका है, इन कर्मों के कारण ही / कर्मों के कारण ही जीव सुखी या दुखी, क्रोधी या क्रूर तथा हिंसक बन जाता है / कर्म के कारण ही अनादिकाल से अपनी आत्मा दुःखमय, पापमय संसार में परिभ्रमण 152