________________ आँख भी है परन्तु आत्मा ही न हो तो चश्मा क्या करेगा ? ताकत तो चेतन की है / आम है, उसका स्वाद लेने वाला शरीर नहीं परन्तु आत्मा है। मान लीजिये, रेलगाड़ी की पटरी पर एक कीड़ी चल रही है और एक पत्थर भी पड़ा है, उसकी आवाज सुन कीड़ी तुरन्त नीचे उतर . जायेगी और पत्थर वहीं का वहीं रहेगा / सभी प्रकार की शक्तियों का स्वामी आत्मा है। प्रश्न- 18. कार्मण वर्गणा - कर्म कब बनती है ? उत्तर- शास्त्रकार भगवन्तों ने आठ प्रकार की वर्गणा कही है / उसमें एक वर्गणा कार्मण वर्गणा भी है / यह कार्मण वर्गणा 14. राजलोक में ठसोठस भरी हुई है / जब तक कार्मण वर्गणा आत्मा के साथ नहीं जुड़ती तब तक वह कार्मण वर्गणा कहलाती है और जब कार्मण वर्गणा के रजकण आत्मा के साथ चिपक जाते हैं तब वह कर्म कहलाते हैं | वही कर्म आत्मा को सुखी-दुखी, बलवान-निर्बल, बुद्धिमान-मूर्ख, रूपवान-कदरूप बनाने का कार्य करते हैं। उत्तर प्रश्न- 19. आत्मा कर्मों को क्यों ग्रहण करती है ? अपनी आत्मा में जो राग-द्वेष के स्पन्द हैं वह चुम्बकीय शक्ति है / कार्मण रजकण वह लोहे के समान है / जब तक अपनी आत्मा में राग-द्वेष आदि परिणाम जागते रहेंगे तब तक आत्मा में चुम्बकीय शक्ति रहेगी / आत्मा लोह-चुम्बक समान बन गई है / जिस कारण सतत कार्मण रजकणों को खींच-खींचकर अपने ऊपर चिपकाने का कार्य कर रही है / सभी संसारी जीवों में सदैव राग-द्वेष के परिणाम उठते ही रहते हैं, जिस कारण प्रत्येक आत्मा, प्रत्येक समय कार्मण रजकण ग्रहण कर कर्मरूप बना रही है / जब राग-द्वेष 151