________________ मेरी अन्तिम इच्छा शीघ्र पूरी करो / इसी विचार धारा में नाचते-नाचते दोनों पति-पत्नी के प्राण पखेरू उड़ गए / दोनों मरकर चौथे देवलोक में गए / . __ इस प्रतिष्ठा महोत्सव को देखने के लिए आकाश में आए हुए देवों ने दोनों की देह को क्षीरसागर में स्नानादि कराकर यथाविधि से अग्नि संस्कार कर दिया / जैसे माता-पिता की मृत्यु का समाचार मण्डल में बैठे जावड़शा के पुत्र जाजनाग को मिला तो वह कल्पान्त करने लगा / ऊपर जाकर जब उसे माँ-बाप का शव भी नहीं मिला तो वह अत्यधिक जोर से रोने लगा / तब वजस्वामीजी ने तथा चक्रेश्वरी देवी ने उसे आश्वासन दिया और समझाया कि तुम्हारे माता-पिता परमात्म-भक्ति के प्रभाव से चौथे देवलोक में गए हैं / देवों ने उनकी अन्तिम संस्कार विधि कर दी है / यह सब समाचार सुनकर जाजनाग को कुछ आश्वासन मिला और स्वयं उसको भी ऐसे माता-पिता की सन्तान बनने का आत्मगौरव होने लगा। तत्पश्चात् जाजनाग ने गुरु की आज्ञा से अपना शोक निवारण करने के लिए सिद्ध गिरिराज से गिरनारजी तीर्थ का छ:री पालित यात्रा संघ निकाला और अपूर्व जिन भक्ति की / इस प्रकार भगवान महावीरस्वामी के निर्वाण बाद 470 वर्ष पश्चात् परम पूज्य वजस्वामीजी के उपदेश से जावड़ शा ने शत्रुजय तीर्थ का तेरहवाँ (13वाँ) उद्धार कराया और मलीन देवों की, मलीन तत्वों की आसुरी ताकत को, आधिभौतिक, आधिदैविक और आध्यात्मिक बल द्वारा अर्थात् जावड़ शा कपर्दी देव और सूरिजी तीनों ने पूरी ताकत लगाकर इनकी शक्ति को क्षीण किया और भगाया / शत्रुञ्जय तीर्थ महान तीर्थ है | पुण्यशाली आत्माओं को ही इसकी भक्ति का सुअवसर मिलता है / 92