________________ श्री शत्रुजय तीर्थ का 14वाँ उद्धार आचार्यश्री हेमचन्द्रसूरिजी तथा बाहड़ शा मन्त्री (विक्रम सम्वत् 1273 ) Gom समस्त गुजरात में महाराजा कुमारपाल का एक छत्री साम्राज्य छाया हुआ था / मात्र सौराष्ट्र का समर राजा कुमारपाल की आज्ञा में नहीं था / कुमारपाल ने उसे युद्ध का सन्देश भेज दिया और अपने विश्वास पात्र मन्त्रीश्वर उदयन को युद्ध का नेतृत्व सम्भालने के लिए युद्ध करने के लिए सेना सहित भेजा / महाराजा कुमारपाल धर्मी होने के नाते उदयन का हृदय भी धर्म के रंग से रंगा हुआ था / उदयन उच्च कोटि का जैन श्रावक था / युद्ध भूमि पर भी दो बार प्रतिक्रमण करता था / जब युद्ध में मोरचे पर जाने के लिए निकला और गुजरात पार करके सौराष्ट्र में प्रवेश किया तो मन्त्री ने अपनी सेना को आदेश दिया कि आप सभी रण में मोरचे पर पहुँचो और मैं शत्रुञ्जय तीर्थ में दादा का दर्शन करके शीघ्र ही पहुँच जाऊँगा / उदयन मन्त्री ने घोड़े की लगाम खेंची और अश्व हवा से बातें करता हुआ बिजली वेग से सिद्धगिरि की ओर भागने लगा | थोड़े ही समय में मन्त्रीश्वर गिरिराज पर पहुंच गए / दादा का दर्शन करके हर्षोल्लास पूर्वक जब चैत्यवन्दन करने बैठे तब अचानक एक घटना घटित हुई / मन्दिर में दीपक जगमगा रहा था / तभी एक चूहा आया वह जलती हुई बत्ती लेकर मूल गम्भारे में चला गया / उस समय मन्दिर लकड़ी का बना हुआ था / मन्त्री तुरन्त उठकर चूहे के पीछे भागा और (दीवेट) बत्ती को बुझा दिया / इस दृश्य ने मन्त्री के हृदय में एक चिन्ता पैदा कर दी / मन्त्री सोचने लगा कि आज तो मैंने देख लिया और बत्ती को बुझा दिया / यदि कोई देखने वाला न होता तो यह जलती बत्ती काष्ट के मन्दिर का स्पर्श करके अनर्थ पैदा कर देती और पूरे का पूरा काष्ठ (लकड़ी) 93