________________ कर जीवन को सफलता की राह पर ले आता है। दीक्षा के 50वें वर्ष में प्रवेश कर चुकी साध्वीश्री प्रगुणाश्रीजी म. सा. एवं संयम-पर्याय के 40वें वर्ष में आराधन करती साध्वीश्री प्रियधर्माश्रीजी म. सा. का जीवन भी सुदेव-सुगुरु-सुधर्म को समर्पित रहा है। चारों योगों का सम्यक् आराधन करते हुए पूज्या साध्वीजी जिनशासन प्रभावना के अनेकविध अनुमोदनीय-अनुकरणीय कार्य कर रही हैं। ज्ञानयोग की गम्भीरता जिनशासन में सम्यग्ज्ञान की बहुत महत्ता है। मात्र पढ़ना अथवा रटना ज्ञान नहीं है, अपितु सम्यक् स्वाध्याय कर उन्हें आत्मा में उतारना ज्ञान है। आचारांगसूत्र में कहा गया है- 'आगम चक्खु साहु' अर्थात् साधु-साध्वीजी का प्राण प्रभु वीर की वाणी यानि आगम शास्त्र है, ज्ञान है। साध्वीश्री जसवन्तश्रीजी म. सा. एवं उनकी सुशिष्या परिवार ने सदैव ही स्वाध्याय के प्रकाश से अपने संयम जीवन को आलोकित किया है। आचार्यश्री विजयसमुद्रसूरीश्वरजी म. सा. के अमृत आशीर्वाद से अहमदाबाद में साध्वी परिवार ने तीन वर्ष रहकर सतत् ज्ञानार्जन किया। तभी से विदुषी साध्वीश्री प्रगुणाश्रीजी म. सा., श्रुतरागिनी साध्वीश्री प्रियधर्माश्रीजी म. सा. आदि के अन्तर्मानस में ज्ञान के प्रति विशेष रूचि है। साध्वीवृन्द ने जैन आगमों का, षट्-दर्शनों का गूढ़ अध्ययन किया है। आचार्यश्री हेमचन्द्रसूरीश्वरजी, आचार्यश्री हरिभद्रसूरीश्वरजी, महोपाध्यायश्री यशोविजयजी आदि अनेकानेक मनीषियों द्वारा लिखित ग्रन्थों का तलस्पर्शी अध्ययन साध्वीजी म. सा. ने किया है। अपने अहर्निश परिश्रम, बौद्धिक कुशलता एवं सुगुरुयोग से ही साध्वीजी ज्ञानयोग की अक्षुण्ण साधना में लीन रहती है, जिसके कारण सरस्वती माता की विशेष कृपा प्राप्त है। ज्ञान को जनोपयोगी बनाने हेतु साध्वीजी म. सा. ने अपने अविरत श्रुतज्ञान से विविध विषयों पर कलम चलाकर सामान्य जन को लाभ हो, इसी उद्देश्य से ज्ञान के प्रचार में रत रहती हैं। विशेष रूप से साध्वीश्री प्रगुणाश्रीजी एवं साध्वीश्री प्रियधर्माश्रीजी द्वारा लिखित-संग्रहित-सम्पादित पुस्तकों ने सैंकड़ों घरों में सम्यग्ज्ञान