________________ मुनि निरंजनविजयसंयोजित जाली का काम करवाया है। उसमें अन्तःपुर की रानीयो आदि स्त्रियों के बैठने की अच्छी सुविधा है। फर्श भी अच्छे 2 विविध रङ्गीन मनोरञ्जक पत्थर से मण्डित है, अतः सामने मध्य भाग में सुवर्ण तथा रत्न जटित सुरम्य सिंहासन अनुपम शोभा दे रहा है / वहाँ अवन्तीपति महाराज भर्तृहरि विराजमान हैं। दोनों तरफ और भी अच्छे 2 सुसज्जित सिंहासन रखे गये हैं / दाहिनी और युवराज विक्रमादित्य का सुवर्ण सिंहासन शून्य दिखाई देता है / बाँई तरफ सिंहासन पर बुद्धिसागर नामक राज्य का मुख्य अमात्य बैठा है / और भी बड़े 2 वीर सामन्तगण अपने 2 योग्य आसन पर विराजमान है। सभा के एक भाग में बड़े 2 पंडित दिखाई दे रहे हैं और पंडितगण अपने सुमधुर काव्योंद्वारा सभा को रञ्जित कर रहे हैं। एक ओर बंदीगण ( भाट ) ऊँचे स्वरसे बिरुदावली बोल कर अवन्तीपति के पूर्वजों के गुणगान कर रहे हैं / राजा के समीप एक भाग में अनेक राजकुमार, मन्त्रिगण और राजपुरोहित, सेनाधिपति वगैरह बैठे हुए हैं। नगर के अन्य भी अच्छे 2 श्रेष्ठी तथा धनी, मानी लोग अपने 2 आसन पर बैठे हैं। इसी तरह प्रजावत्सल महाराज भर्तृहरि प्रतिदिन राजभक्त प्रजा से सुख-दुःख सुनते तथा उसका योग्य उपाय करके प्रजा .को प्रसन्न रखते थे। एक दिन महाराज इसी तरह सभा में बैठे थे। एक द्वारपाल आया और हाथ जोड़ कर बोला-'हे राजन् ! द्वार पर एक ब्राह्मण आपके दर्शन के लिये खडा है, आपकी जैसी आज्ञा हो। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org