________________ विक्रम चरित्र ब्राह्मण का आगमन .... महाराज ने आने के लिये आज्ञा दी। द्वारपाल झुक कर अपने स्थान पर गया और ब्राह्मण को सभा में भेजा। .. ब्राह्मणने सभा में आकर आशीर्वाद देते हुए एक फल राजा के हाथ में दिया। . महाराजने कुतूहल से पूछा कि इस फलका नाम और गुण बताओ तथा इस की प्राप्ति कैसे हुई ? वह सब सविस्तर मुझे सुनाओ। दिव्य फलकी प्राप्ति और उसका वर्णन . ब्राह्मण बोला-'हे राजन् ! मैं अत्यन्त दीन हूँ / खाने तक का भी ठिकाना नहीं है। इसलिये मैंने भगवती भुवनेश्वरी देवी का आराधन किया / उसने प्रसन्न होकर मुझको यह फल दिया और इसका प्रभाव सुनाया कि-." हे ब्राह्मण ! इस फल के खाने से मनुष्य चिरंजीवी होता है / " तब मैंने फल लेकर कहा कि-' हे अम्बे ! हमारे जैसे दुर्भागी को इस फल से क्या लाभ ?' क्यों कि धनके बिना चिरंजीवीत्व किसी काम का नहीं केवल दुःख दायक ही है / ' कहा भी है:.. वरं वनं व्याघ्रगजादिसेवितम् , जलेन हीनं बहुकण्टकावृतम् / - तृणैश्च शय्या वसनं च वल्कलम् , . न बन्धुमध्ये निर्धनस्य जीवितम् // 50 // Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org