________________ तीसरा प्रकरण राजा भर्तृहरिका दरबार मणिना वलयं वलयेन मणिः मणिना वलयेन विभाति करः। कविना च विभुर्विभुना च कविः कविना विभुना च विभाति सभा॥ शशिना च निशा निशया च शशी शशिना निशया च विभाति नमः। पयसा कमलं कमलेन पयः पयसा कमलेन विभाति सरः // मणि-रत्न से कंकण तथा कंकण से मणि और इन दोनों से कर (हस्त) शोभा को प्राप्त करता है। कवि से राजा तथा राजा से कवि और इन दोनों से सभा अपूर्व शोभा को प्राप्त होती है / चंद्र से रात्रि तथा रात्रि से चन्द्रमा और इन दोनों से आकाश सुंदर शोभा पाता है / एवं जल से कमल तथा कमल से जल और इन दोनों से सरोवर भी शोभा को प्राप्त करता है // इसी प्रकार मालव देशान्तर्गत अति प्रसिद्ध अवन्तीनगरी में अवन्तीपति महाराजा भर्तृहरि कवि-रत्नों से युक्त राजसभा में रत्नजडित सिंहासन पर विराजमान हैं / ___ पाठकगण ! उस समय का राजभवन तथा सभा की शोभा का वर्णन इस निर्जीव कलम से सम्भव नहीं। तथापि" अकरणान्मन्दं करणं श्रेयः" / अर्थात् मौन रहने की Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org