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________________ मुनि निरंजनविजयसंयोजित 13 अवधूत का आगमन सुनकर उनके दर्शन के लिये आने लगे। लोगों की बहुत भीड थी। भतृहरिके राज्यत्याग का सुनना उसी में परस्पर बात करते हुए लोगों के मुख से सुना कि-' अवन्तीपति भर्तृहरि राज्य छोडकर तपस्या के लिये वन में चले गये हैं और अभी राज्य--गद्दी खाली है और अधम राक्षस के उपद्रव से अवन्ती की प्रजा पीडित हो. रही है।' इत्यादि बातें सुनते हुए रात्रि बिताई / विक्रमादित्यका अवन्ती प्रति गमन बाद में प्रभात होते ही अवधूतने भट्टमात्र मित्र से कहा कि-" अब मैं अपने भाग्य की परीक्षा के लिये अवन्ती की ओर जाता हूँ, तुम खुशी से आज्ञा दो।" तब भट्टमात्रने कहाः “शिवास्ते पन्थानः सन्तु" अर्थात् " तुम्हारा गमन सफल हो, तुम आनन्द के साथ जाओ।" भट्टमात्र विक्रम को भक्ति से भेटकर उनका गुण-स्मरण करता हुआ अपने गावः की और चला / अवधूत भी अवन्ती की ओर भट्टमात्र का गुणस्मरण करता हुआ चला। .. अब पाठकों को अवन्ती नगरी का राजदरबार और राजा .... भर्तृहरि का विस्मयकारक वर्णन आगे के प्रकरण में दीखाया जायगा. Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004265
Book TitleMaharaj Vikram
Original Sutra AuthorShubhshil Gani
AuthorNiranjanvijay
PublisherNemi Amrut Khanti Niranjan Granthmala
Publication Year
Total Pages516
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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