________________ विक्रम चरित्र __यह सुनकर विक्रम आश्चर्य से बोला- हे मित्र ! हमारे / बडे भाई भर्तहरि अच्छी तरह अवन्ती का राज्य चला रहे हैं और प्रजापालन में सदातत्पर हैं, तो मुझे राज्य की सम्भावना कैसे हो सकती है ? फिर भट्टमात्र बोला हे मित्र ! इस विषय में तुम संदेह मत करो यह ऐसा ही होगा। ___ भट्टमात्र का निश्चयात्मक शब्द. सुनकर प्रफुल्लित हृदय से अवधूत-विक्रम ने कहा कि 'यदि ऐसा होगा तो तुम्हे अवश्य प्रधान मंत्री बनाऊँगा। , फिर दोनों ने घूमते 2 किसी गावमें जाकर रात्रि बितायी / विक्रमने कहा ' हे परम मित्र . भट्टमात्र ! तुम्हारे जैसा विद्वान् तथा कार्य दक्ष मित्र किसी भाग्यशाली को ही मिलता है / तुमने इस मुसाफरी के अन्दर मुझे जो मदद दी है, वह मैं कभी भी नहीं भूल सकता / इसलिये हे मित्र ! यदि कभी अवन्ती का राज्य मिला जानो, तो अवन्तीपुरी अवश्य आ जाना / ' यह सुनकर भट्टमात्रने हँसते हुए कहा- हे मित्र ! “प्राप्ते हि विभवे केन दीनं मित्रं न विस्मृतम् ?" अर्थात् वैभव प्राप्त होने पर हमारे जैसे दीनमित्रों को कौन नहींभूलता ? अर्थात् तुम मुझे भूल जाओगे। तब विक्रमादित्य ने कहा " हे मित्र ! इस विषयमें मैं ज्यादा क्या कहूँ ? समय आने पर मालूम होगा / " इस प्रकार दोनों मित्र परस्पर वार्ता-विनोद करते हुए निकटवर्ती नगर की धर्मशाला में आकर ठहरे / उतनेमें नागरिक लोग Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org