________________ दूसरा प्रकरण तापीके किनारे . इसी प्रकार भूमंडल में भ्रमण करते हुए तापी नदी के तट पर दोनों आ पहुँचे। वहाँ किसी वृक्ष के नीचे रात्रि में विश्राम के लिये ठहरे। शृगाल का शब्द और और आभूषणयुक्तशब-, उसी समय एक श्रृंगाली का शब्द सुनाई पडा / भट्टमात्र श्रृगाली की भाषा अच्छी तरह जानते थे उसने अवधूत को कहा कि यहाँ पास में ही अच्छे आभरणों से युक्त कोई मरी हुई स्त्री पडी है / विक्रमादित्य इस आश्चर्यकारक घटना देखने के लिये उस शब्द के अनुसार उस बाजु चले / वहाँ जाकर उसी प्रकार स्त्री को देखकर भट्टमात्र को कहा कि 'तेरा वचन सत्य है / ' ' किन्तु हे मित्र ! इस मुर्दे के आभूषण मैं नहीं लेसकता' यदि तुम्हारी इच्छा हो तो तुम लेलो / ' भट्टमात्र बोला कि 'तुम यदि यह नहीं लोगे तो मैं भी ऐसा चाण्डालिक कार्य करके धन नहीं चाहता' जैसे कहा है:क्षुरक्षामोऽपि जराकृशोऽपि शिथिलपायोऽपि कष्टां दशामापन्नोऽपि विपनदीधितिरपि प्राणेषु गच्छत्स्वपि / मत्तेभेन्द्रविशालकुम्भदलनव्यापारबद्धस्पृहः, किं जीर्णं तृणमत्ति मानमहतामग्रेसरः केसरी // 113 // Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org