________________ मुनि निरंजनविजयसंयोजित धन और मान दोनों को चाहते हैं, किन्तु उत्तम पुरुष तो केवल मानकी ही इच्छा रखते हैं / क्यों कि उत्तम पुरुषों का मान ही श्रेष्ठ धन है। विक्रमादित्य का अवन्तीत्याग तथा अवधूतवेष इसतरह सोचने के बाद किसीको पूछे बिना रात्रि के समय तलवार रूप मित्र को साथ लेकर पराक्रमी युवराज विक्रमादित्य अकेले ही घर से भाग्य की परीक्षा के लिये निकल गये, और अवधूत वेष में इधर-उधर घूमते रहे / एक समय किसी गाँव के समीप एक जगह बहुत से लोग एकत्रित होकर बैठे थे। उनके बीच में " भट्टमात्र " नामक एक नौतिज्ञ पुरुष अपनी चातुर्यपूर्ण कला प्रदर्शित करता हुआ नागरिकों को आनन्दित कर रहा था / ठीक उसी समय विक्रमादित्य अवधूत के वेष में वहाँ आ पहुँचे। अवधूतने मनमें सोचा कि यह बीच में बैठा हुआ जो मनुष्य लोगों को मनोरञ्जन करा रहा है, यह कोई बड़ा पंडित या तो अच्छा ज्ञानी होना चाहिए, ऐसा विदित होता है / इतने में 'भट्टमात्र' की दृष्टि भी आगन्तुक अवधूत पर पड़ी, अवधूत को देख कर भट्टमात्र सोचने लगे कि यह अवधूत के वेषमें कोई तेजस्वी राजकुमार मालूम पडता है। इसलिये उनके साथ बातचित की उत्कण्ठा से तुरंतही कार्य समाप्त कर अवधूत के पीछे 2 गये और उनसे मिलो। भट्टमात्रसे मैत्री. बातचीत करने पर उन दोनो में मैत्री हो गई। वे दोनो Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org