________________ विक्रम चरित्र बड़े उत्सव के साथ युवराज कुमार भर्तृहरि का राज्याभिषेक किया और पराक्रम शिरोमणि विक्रमादित्य कुमार को युवराजपद पर विभूषित किया / नूतन अवन्तीपति महाराज भर्तृहरि बड़े प्रेम से प्रजा पालन के लिये राज्य-धुरा वहन करते हुए समय व्यतीत करते थे। उसी तरह पराक्रमी युवराज विक्रमादित्य भी आनन्द पूर्वक समय बिता रहे थे। विक्रमादित्य का अपमान किसी दिन पटरानी अनङ्गसेना (पिंगला) द्वारा महाराज भर्तृहरि से युवराज विक्रमादित्य का कुछ अपमान हुआ। स्वमानी विक्रमादित्य " इस स्थान में एक क्षण भी ठहरना उचित नहीं है " यह सोच कर दुःखित हृदय से अपने निवास-भवन में लौट कर विचार करने लगे। किसी नीतिकारने ठीक ही कहा है: " वरं प्राणपरित्यागो, न मानपरिखण्डनम् मृत्युर्हि क्षणिकं दुःखं, मानभङ्गो दिने दिने"॥ अर्थात् श्रेष्ठ पुरुष प्राण त्याग कर सकते हैं, किन्तु मान भंग नहीं सह सकते है; क्यों कि मृत्युसे क्षण मात्र ही कष्ट होता है किन्तु मान भंग से जन्मभर कप्ट होता है / और भी कहा है कि " अधमा धनमिच्छन्ति, धनमानौ च मध्यमाः। . उत्तमा मानमिच्छन्ति, मानो हि महतां धनम् " // अर्थात् अधम पुरुष केवल धन चाहते हैं, मध्यम पुरुष Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org