________________ विक्रम चरित्र घूमते-घूमते रोहणाचल पर्वत के समीप किसी गाँव में आ पहुँचे / भट्टमात्र को वहाँ किसी मनुष्य से पूछने पर पता लगा कि यहाँ पर्वत की खान में धन है किन्तु जो मनुष्य मस्तक पर हाथ रख कर हा दैव ! 2 इस प्रकार उच्चारण करता है उसीको रोहणगिरि बहुत मूल्य रत्न देता है। यह सुनकर विक्रम ने कहा कि जो इस प्रकार दीनवचन कहकर धन लेता है वह कायर पुरुष है / इसलिये यदि इस प्रकार दीन वचन कहे बिना रोहणगिरि रत्न देवे तो मैं ग्रहण करूंगा, अन्यथा नहीं / कहा भी है.. उद्योगिनं नरं लक्ष्मीः , समायाति स्वयंवरा / देवं देवमिति प्रोच्चै-र्वदन्ति कातरा नराः // 95 // अर्थात् उद्योगी पुरुष के पास लक्ष्मी स्वयं आजाती है। दैव ! दैव ! कह कर धन की इच्छा रखनेवाले कायर पुरुष कहे जाते हैं। ____ बाद में विक्रम भट्टमात्र के साथ रोहणगिरि पर गये और वहाँ विक्रम को भट्टमात्र ने हा देव ! हा दैव ! यह दीनवचन बोलने को कहा। - किन्तु विक्रमने दीन वचन बोले बिना हि कुठाराघात किया। परन्तु रत्न प्राप्त नहीं हुआ। तव भट्टमात्र एक युक्ति सोचकर खान पर से बोला-'हे विक्रम ! अवन्ती से एक दूत आया है, वह कहता है कि तुम्हारी माता " रानी श्रीमती" अकस्मात् Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org