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________________ सूरीश्वरजीने विक्रमादित्य महाराजाको आश्चर्यकारक चमत्कार का दिखाना व लिंगस्कोटन द्वारा अवन्ती पार्श्वनाथका प्रगट होना आदिवर्णन कर दिखाया जायगा / इस तरह छट्ठा सर्ग खतम होता है। समाप्तः षष्ठः सर्गः सर्ग सप्तम पृष्ठ 375 से 400 तक प्र. 31 तक प्रकरण तीस और इक्कतीस भगवानश्री अवन्ती पार्श्वनाथ व सिद्धसेन दिवाकर सूरिजी . प्रिय पाठकगण ! आप इस प्रकरणमें आश्चर्यान्वित बात पढकर खुश हो जायेंगें, क्युं की श्री सिद्धसेन दिवाकर सूरिजी जो की गुरुदत्त प्रायश्चित्त के कारण अवधूतरूपमें नीकले हुए है, और महाकालके मंदिरमें शंकर के लिंगके सामने अवधूतवेषमें ही पैरकर सोये हुए है, राजाज्ञासे उनको चाबुक से ताडित करनेपर वह चाबुक अंतःवासमें राणियोंको पडता है, उससे अन्तःपुरमें कोलाहल मच गया और दासी द्वारा यह वृत्तान्त सूनकर आखिर खुद राजा महादेवके मंदिर में आते है और इष्टदेवकी स्तुति के लिये अवधूतको कहते है, स्तुतिमात्रसे ही लिंग भेदित होकर श्रीपार्श्वनाथ की प्रतिमा प्रगट होती है / वहाँ ही सूरिजी महाराजा को उपदेश करते है। श्रीमती व Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004265
Book TitleMaharaj Vikram
Original Sutra AuthorShubhshil Gani
AuthorNiranjanvijay
PublisherNemi Amrut Khanti Niranjan Granthmala
Publication Year
Total Pages516
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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