________________ शिवराजाकी पूर्वभवकी कथा सुनाते है, शिवको कुमार्गसे बचाने के लिये श्रीमती देव बनकर मृत्यु लोकमें आती हैं और राजमार्गमें चाण्डाली का रूप धारण करके जल छीटकती है, उसका कारण राजा पूछता है यह सब वृत्तान्त इस प्रकरणमें मीलेगा और सूरिमहाराजके सद्उपदेशसे विक्रमादित्य सारे भारतवर्ष को दान देकर ऋणरहित करता है और कीर्तिस्तम्भ के लिये मंत्रीयोंसे कहता है, रात्री में विपके घरके पास साढ और भंसाकी लडाई होती है जिसमें राजा फसा हुआ है उसकी शांतिके लिये ब्राह्मण ग्रहों की शांति करता है, जिससे उस विप्रको राजा राजसभामें सन्मान करके उसका दारिद्य दूर करता है। साथ ही साथ यह सातमा सर्ग, यह प्रकरण और यह विक्रमादित्य के चरित्रका पूर्वार्ध प्रथम भाग समाप्त होता है। ॐ शांतिः। समाप्तः सप्तमः सर्गः Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org