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________________ आया और विक्रमचरित्र एकाकी जंगल में घूमता हुआ किसी पेड के नीले आया, वहाँ उसको वृद्ध भारण्ड मील जानेसे आराम पूर्वक रहने लगा। अढाइसवा प्रकरण . . . . पृष्ठ 343 से 355 तक भारण्ड पक्षी व गुटिका का प्रभाव नेत्रप्राप्तिका उपाय और कनकपुर जानेमें भारण्ड पुत्र की मदद और वहाँ वैद्यरूपमें श्रेष्टी पुत्र को निरोगी बनाना, और शेठ के द्वारा वहाकी राजपुत्री को नेत्रपीडासे बचाकर काष्ठभक्षण से बचाना व उन राजपुत्री से सादी करना, दुश्मन सामन्तोंका राज्य कन्यादानमें लेना, सामन्तोंको युक्तिसे वशमें लेना व उनके द्वारा सेवा पाना यह आश्चर्यकारक घटना कनकसेन राजाको आश्चर्यान्वित बनाती है और साथ ही साथ यह प्रकरण खतम होता है। आगे कीस तरह का संयोग होता है और भावी मनुष्य को कहाँ ले जाता है यह आगे के प्रकरणमें पढने के लिये आप लोग सावधान हो जाय / उगनतिसवा प्रकरण . . . . पृष्ठ 356 से 374 वक्र समुद्रमें गिरना तथा घर पहुँचना वैद्यरूपमें रहे हुए विक्रम समुद्र तटपर क्रीडा करते थे उस समय किसी व्यक्ति को गभराते हुए और काष्ठ पकडकर समुद्रतट नजदीक आते देखकर उसको बचाना व सचेतन करने बाद उसका और उसके द्वारा अवन्तीका हाल पूछना, अवन्ती का हाल सुनकर विक्रमने अवन्ती Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004265
Book TitleMaharaj Vikram
Original Sutra AuthorShubhshil Gani
AuthorNiranjanvijay
PublisherNemi Amrut Khanti Niranjan Granthmala
Publication Year
Total Pages516
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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