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________________ आनंदकुमार लग्न कराता है / राजा महाबलको अपनी पुत्री मीलती है। विक्रमचरित्र व शुभमतीका परस्पर लग्न होता है / इधर अवन्तीनगरीमें रूपवती काष्ठभझण के लिये तैयार हुई है, उस समय विक्रमचरित्र आ पहुँचता है और माता-पितासे मिलकर रूपमतीसे लान करता. है। रोमांचपूर्ण यह प्रकरण के साथ पंचम सर्ग भी खतम होता है, और आगे रोमांचक कथा पढने की इन्तेजारी कराता है। समासःपंचमः सर्गः सर्ग षष्ठ पृष्ठ 321 से 374 तक प्र. 26 से 29 प्रकरण छव्वीसवा . . . . पृष्ठ 321 से 330 तक विक्रमादित्य का गर्व ... महाराजा विक्रमादित्य को अपने राजवैभव और बलका अति गर्व हुआ था, माता के कहने पर भी विश्वास न होने के कारण अपना शहर छोडकर परीक्षा के लिये अन्य जगह जाते. ही उनको कृषिकार मील गया और उनका तथा उनके मित्र व उनकी स्त्री का अपरिमित बल देखकर उनके गर्वका खंडन हो गया, और देव के द्वारा अपने गर्व के लिये प्रतिबोध पाके अपनी माता के पास वापस जाकर सत्य अहेवाल जाहेर किया। ... बादमें किसीसे भेट मीले घोडे पर आरूढ होकर किसी दूर Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004265
Book TitleMaharaj Vikram
Original Sutra AuthorShubhshil Gani
AuthorNiranjanvijay
PublisherNemi Amrut Khanti Niranjan Granthmala
Publication Year
Total Pages516
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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