________________ जाते हुए विक्रमचरित्र के रूपको देखकर श्रेष्ठी कन्या लक्ष्मी प्रसन्न हो गई और अपनी सस्त्रीद्वारा उसको अपने मकान पर बुलाया। विक्रमचरित्र वहाँ गया और जाते ही उसने उसको भगिनी कहकर बोलाई / रूपमोहित लक्ष्मी प्रणय प्रतिकुल वचन सुन मूर्छित हो गइ, बाद सखीसे सचेतन हुई आखिर विक्रमचरित्रने लक्ष्मी द्वारा अपना कार्य साधनेका साहस किया और राजपुत्रीसे मिला और पुनः मिलने का संकेत किया गया इस तरह यह प्रकरण खतम हुआ। पकरण चोइसवा . . . . पृष्ठ 291 से 304 तक . शुभमती इधर कुमार धर्मध्वज लान समय जानके ठाठमाठसे सादी करनेके लिये आया / इधर विक्रमचरित्र पूर्व संकेतानुसार अपने स्थानपर पहुँच गया। देहचिन्ताका बहाना करके यथाअवसर राजकुमारी शुभमती राजमहल से निकल पड़ी। कर्मकी गति गहन है, शुभमती और विक्रमचरित्र का भेटा न हुआ, 'विक्रमचरित्र के वेशमें स्थित सिंहनाम कृषिवल के साथ चलती हुई राजकुमारी को जब यह भेद मालम हुआ. तब वह चालाकीते वहासे छूटकर गिरनार की ओर चली। ____इधर किसी पेड पर एक वृद्ध भारंड पक्षी अपने बच्चों के साथ रहता था, प्रभातमें बच्चे चारा चरनेको जाया करसे थे, और सामको आकर देखा हुआ सब हाल वृद्ध पिलाको सुनाते थे लिसमें एक बच्चेने बल्लभीपुरमें बना हुआ शुभमती का हाल सुनाया। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org