________________ कराया / विहार करते सूरिजी ओंकार नगरमें पधारे / फीर वहाँ से अवन्तीपुर पधारे और श्लोक लिखकर द्वारपाल के साथ राजाके पास भेजे / बाद राजसभामें आकर पांच श्लोक राजा को सूनाये राजाने खुश होकर आखिर सारा राज्य देनेको कहा किन्तु निर्लोभी सूरिजीने राज्यादि ऋद्धि लेनेसे इन्कार कीया, आखिर राजाके द्वाराओंकार नगरमें एक विशाळ जिनमंदिर बनवाया और सूरिजीकी एकदिन सूत्रोंकी प्राकृतभाषा बदलकर संस्कृतभाषामें रचना करनेकी इच्छा हुई / जब यह बात गुरुदेवको कहि तब गुरुदेवने उपालम्भ दिया और उनको प्रायश्चित्त लेने को कहा गया। प्रायश्चित्त लेकर श्रीसिद्धसेन दिवाकर सूरि वहाँसे निकल कर अवधूतवेषमें अनेक स्थालोमें भ्रमण करने लगे। इस तरह यह प्रकरण ख़तम हुआ। प्रकरण तेईसवा . . . . पृष्ठ 272 से 290 तक कन्या की शोध राजा विक्रमादित्य अपने राजकुमार के लिये कन्याकी शोध करने लगे आखिर में मन पसंद कन्या नहीं मीली, जब सेनायुक्त मंत्री भट्टमात्रको कन्या की तलास के लिये भेजा / एक भट्टद्वारा वल्लभीपुर के राजाकी शुभमती नामक कन्याका हाल सुना और भट्टमात्र वल्लभीपुर गये / वहासे वापस आकर राजा को शुभमतीका हाल सुनाया / जिसको सुनकर कुमार प्रसन्न हो गया और उस कन्याके प्रति उसको अनुराग उत्पन्न हुआ। मनोवेग घोडे को लेकर पाच ही दीनमें अवन्तीसे वल्लभीपुर प्रति गमत किया। वल्लभीपुरमें Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org