________________ की ओर चला / अपनी माताके पास जाकर अपने पिताके संबंधों सब हाल सुनाया और माताको साथ लेकर वापस अपने पिताके पास अवन्ती आया / ... राजा विक्रमादित्यने दिव्यसिंहासन बनवाया। जिसकी प्रशंसा आज तक संसारमें की जाती है / एकदिन किसी योगीने आकर राजाको अद्भुत फल भेट किया और इसका फल बताया, विद्यासाधनेमें राजा खूद उत्तरसाधक बने। योगीने राजाको वृक्षकी शाखामें बँधे हुए शबको लाने के लिये भेजा / योगी राजाको अग्निकुंड में डालना चाहता है एसा संदेह होनेसे राजा दूर रहता था। लेकिन चालाकी से दुष्ट योगीको हो अग्निकुंडमें राजाने फेंक दिया और फेंकते ही सुवर्णपुरुष बन गया / अग्निका अधिष्ठायक देव प्रगट हुआ और उसका फल बतलाया / शून्य राजमहल.होनेसे मंत्री वर्ग राजाको ढूंढने लगे, राजाका पत्ता चला, और सुवर्णपुरुषका वृत्तान्त सुना / दुष्ट बुद्धि का वर्णन करते हुए वीरमती की कथा सुनाई और यह प्रकरण खतम हुआ। प्रकरण बाईसवाँ . . . . पृष्ठ 262 से 271 तक सिद्धसेन दिवाकर सरि ..... पू. श्री वृद्धवादिसूरीश्वरजी के शिष्य श्री सिद्धसेन दिवाकर सूरिसे राजा विक्रमादित्य की भेट हुई और धर्मोपदेश सुना / जिससे उसने उदारतासे दान देना शुरू किया और जीर्ण मंदिरोंका जीर्णोद्धार Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org