________________ मुनि निरंजनविजयसंयोजित दान, शील, तप, भाव इन भेदों से चार प्रकार के धर्म को करने वाले सांसारिक प्राणी मुक्ति और सुख को प्राप्त करते हैं। शंख राजा की पत्नी रूपवती के समान निरन्तर चतुर्विध दान करने वाले मनुष्य मुक्ति को शीव प्राप्त कर लेते हैं / इसकी कथा इस प्रकार है दान धर्म की पुष्टि में शंख राजा की रानी रूपवती का उदाहरण ___ " शंखपुर नाम के नगर में बहुतसी सेनावाला तथा विद्वान् 'शंख' नामका राजा राज्य करता था। उस राजा को शील आदि गुणों से सम्पन्न अत्यन्त सुन्दरी प्राणप्रिय "रूपवती" आदि सात रानियाँ थी। एक दिन किसी चोरने राजा के भंडार से मणियों से भरी पेटी उठाई और ज्योंही वह नगर के बाहर निकला कि सैनीकों ने पीछा करके उस को पकड़ लिया और राजा के समीप लाकर बड़ी निर्दयता से उस को मारा / राजाकी आज्ञा से राजपुरुष वध करने के लिये ले जा रहे थे, मार्ग में रानी रूपवती ने उस को पूछा / पूछने पर चोर दीनतापूर्ण वाणी से दया चाहने लगा। चोर की दीनतापूर्ण वाणी सुन कर रानी रूपवती उस के दुःख से अतीव दुःखी हुई और इस तरह विचार करने लगी। _“जिसका चित्त सब प्राणियोंपर दयासे द्रवीभूत हो जाता है उसको ही ज्ञान और मोझ मिलता है। जटा, भस्म और भगवे वस्त्र धारण करना व्यर्थ है। मतलब कि दया से रहित होकर भस्म आद Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org