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________________ 350 विक्रम चरित्र वाला देखा तो कहा कि 'मैं इस वैद्य से ही विवाह करूँगी, अन्यथा अग्नि में प्रवेश करके प्राणत्याग कर दूंगी।' तब राजाने कहा कि 'हे पुत्री ! इस वैद्य के कुल-गोत्र आदि का हमें कुछ भी पता नहीं है। अतः में तुम को इसे कैसे दे दूँ।' राजा की यह बात सुन कर उस की पुत्रीने पुनः कहा कि 'आप इस विषय में कुछ भी विचार न करें। मैं तो इसी वैद्य से ही विवाह करूँगी, अन्यथा अग्नि प्रवेश करूँगी।' इस प्रकार दृढता पूर्वक राजपुत्री के आग्रह करने पर राजा ने अपने मंत्री आदि से कहा कि 'यह कन्या मेरी बात नहीं मान रही है। इस लिये इसे मेरे से दूर ले जाकर कहीं वाटिका आदि में आप लोग इस कन्या का वैद्य से लान करा दे। तथा जिस देश में मेरे शत्रु और कष्टसाध्य राजा लोग हैं वह देश वैद्य को दे दें। विक्रमचरित्र का राजकन्या से लग्न व राज्यप्राप्ति इसके बाद मंत्री लोगों ने राजा की आज्ञा पाकर विक्रमचरित्र से उस राजकन्या का लग्न करा दिया तथा राजा के कहे हुए देश उसे दे दिये। फिर वह वैद्य विक्रमचरित्र राजा के दिये हुए द्रव्य से चित्रशाला आदि से शोभायमान एक बहुत बड़ा प्रासाद बनवा कर अपनी प्रिया के साथ उस में रहने लगा। अमात्यों ने राजा को आकर लग्न हो जाने का कहा / राजा ने कहा कि मेरी यह कन्या दुःख भागिनी होगी। मैं ने इसको नेत्र दिलाकर इसका उपकार किया, परन्तु यह मेरी पूरी शत्रु हो गई। यह Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004265
Book TitleMaharaj Vikram
Original Sutra AuthorShubhshil Gani
AuthorNiranjanvijay
PublisherNemi Amrut Khanti Niranjan Granthmala
Publication Year
Total Pages516
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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