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________________ मुनि निरंजनविजयसंयोजित 349 श्रेष्ठी ने पुनः पूछा कि 'हे नरश्रेष्ठ ! क्या इसका कोई उपाय है, जिससे यह कन्या दिव्यनेत्र वाली बन जाय, कुमारने कहा कि 'अवश्य ही यह कन्या दिव्य नेत्रवाली हो सकती है। इस प्रकार कहने पर श्रीद तत्काल राजा के पास गया / राजा के पास जा कर उसे श्रेष्ठी ने कहा कि 'ईस समय अपनी पुत्रीको समझाइये कि वह काष्ठभक्षण न करे। एक सुन्दर और चरित्रवान् वैद्य मेरे घर पर आया है। वह आपकी कन्या को दिव्य नेत्रबाली बना देगा।' राजपुत्री के नेत्र खुलना ___ यह बात सुन कर राजा ने शीघ्र ही अपनी कन्या से जाकर कहा कि 'एक परदेशी वैद्य आया है, जो तुम को औषधि द्वारा उपचार करके दिव्य नेत्रवाली कर देगा।' इस प्रकार बार बार कहने से बड़े कष्ट से राजा अपनी पुत्री को लौटा कर राजमहल में ले आया। फिर राजाने श्रेष्ठी से कहा कि 'अब मेरी पुत्री को ठीक करा दो / ' तब श्रेष्ठी ने पूछा कि 'हे राजन् ! उस वैद्य को क्या दोगे?' राजाने कहा कि 'मेरी पुत्री को ठीक कर ने पर में उस वैद्य को अपना आधा राज्य दे दूंगा।' तब उस श्रेष्ठी के बुलाने पर वैद्य 'विक्रमचरित्र' राजा के पास आया / वहाँ उस औषध को अनेक आडम्बर सहित राजपुत्री के नेत्रों में लगा कर उसे देखने वाली बना दिया / पुत्री के नेत्र प्राप्त करने से नगर में सर्वत्र नृत्य गीत आदि से उत्सव कराया। वैद्य से लग्न करने का आग्रह राजपुत्री ने अपने उपकारक उस वैद्य को दिव्य शरीर Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004265
Book TitleMaharaj Vikram
Original Sutra AuthorShubhshil Gani
AuthorNiranjanvijay
PublisherNemi Amrut Khanti Niranjan Granthmala
Publication Year
Total Pages516
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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