________________ सत्ताइसवाँ प्रकरण जंगल में एकाकी विक्रमचरित्र की सोमदन्त से मित्रता किसी समय राजाने मुख्य खजानची को कहा कि 'मेरा पुत्र जो जो द्रव्य माँगे वह उसे देना' जिस से खजानची राजा के पुत्र को इच्छानुसार धन देने लगा। राजकुमार विक्रमचरित्र का धीरे धीरे दान्ताक श्रेष्ठी के दूसरे पुत्र सोमदन्त के साथ प्रेम हो गया / विक्रमचरित्र अपने मित्र सोमदन्त के साथ अच्छे अच्छे वृक्षों से युक्त बाहर के उद्यान में क्रीड़ा करने के उद्देश से गया / वहाँ एक वृक्ष के नीचे धर्मध्यान में लीन धर्मघोष नामक सूरीश्वर बैठे हुए थे। विक्रमचरित्र वहाँ जाकर धर्मोपदेश सुनने के लिये विनय पूर्वक उन के आगे बैठ गया। धर्मघोषसूरि से धर्म श्रवण तब धर्मघोषसूरिने विक्रमचरित्र को मोक्ष और सुख देने वाला धर्मोपदेश सुनाया। दूसरी बातों के साथ साथ उन्होंने कहाः Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org