________________ mmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmm विक्रम चरित्र चुका हूँ। राजा के कहने पर पुनः बालक ने कहा कि 'हे राजन् ! दान का महात्म्य सुनो। मैंने अन्नपान के दान से इस नगर में जन्म पाया है। पूर्व जन्म में मैंने बन में आप को आदर पूर्वक अन्नपान दिया था, उसी दान का फल है कि मैं आज बत्तीस कोटि सुवर्ण के स्वामी शेठ श्रीपति का पुत्र हुआ हूँ। राजा उस बालक की यह बात सुनकर अत्यन्त प्रसन्न हुआ / तथा पूछा कि 'तुम अपनी स्त्री का हाल कहो।' तब उस बालक ने कहा कि वह इसी नगर में दान्ताक सेठ के घर में उस की पुत्री होकर जन्म ले चुकी है। आगे वह मेरी ही स्त्री होगी। राजा ने पुनः प्रश्न किया कि 'तुम अभी उत्पन्न हुए हो फिर तुम को इस प्रकार का ज्ञान कैसे हो गया ?' तब उस बालक ने उत्तर दिया कि 'देवी पद्मावती मेरे द्वारा बोल रही पुनः दान शुरु करना राजाने इस बात को जान कर संतोष व आनंद प्राप्त किया और पुनः दान उपकार आदि पहले की तरह उल्लास भावसे ही करने लगा। राजाने खुश होकर उस बालक को पांच सौ गाँव इनाम दिये। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org